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{{KKRachna
|रचनाकार=डेनिस ब्रूटस
|अनुवादक=कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चैन से सोओ मेरे प्यार चैन से सोओ
व्यस्त तटों पर बंदरगाहों की रोशनी चमक रही है
अंधेरी सुरंगों से तिलचटटों की तरह गुजर रही हैं
पुलिस की गाडियां
टिन की चादर से बनी
घरों की छतें चरमरा रही हैं
हिंसा के नाम पर फेंके जा रहे हैं खटमलों से भरे चिथडे
हवा में तैरती सायरण की आवाज सा व्याप्त है आंतरिक भय।
दिन भर की तपिश से रेगिस्तान और पर्वतों का
आक्रोश धडक रहा है
पर कम अज कम
इस जीवित रात्रि के लिए
मेरे देश मेरे प्याार सोओ
चैन की नींद सोओ।
</poem>
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|रचनाकार=डेनिस ब्रूटस
|अनुवादक=कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
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चैन से सोओ मेरे प्यार चैन से सोओ
व्यस्त तटों पर बंदरगाहों की रोशनी चमक रही है
अंधेरी सुरंगों से तिलचटटों की तरह गुजर रही हैं
पुलिस की गाडियां
टिन की चादर से बनी
घरों की छतें चरमरा रही हैं
हिंसा के नाम पर फेंके जा रहे हैं खटमलों से भरे चिथडे
हवा में तैरती सायरण की आवाज सा व्याप्त है आंतरिक भय।
दिन भर की तपिश से रेगिस्तान और पर्वतों का
आक्रोश धडक रहा है
पर कम अज कम
इस जीवित रात्रि के लिए
मेरे देश मेरे प्याार सोओ
चैन की नींद सोओ।
</poem>