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|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
चलल जा रहल छी कि लक्ष्यो ठेकानल
मुदा वाटकेर काँटमे छी झमारल।
कि आएल कतेको कि अन्हर-तूफानों
कि जिवगीकें परतीकें श्रमसँ सामरल।
हेरा गेल ममता कि स्नेहो गमाओल
ने लेशो परेमक कतहु एहि जगमे।
ने संगी केओ अछि, ने साथी केओ अछि
कि पाँतर कतेको हमर एहि मगमे।
हेरा गेल सभटा कि सेरा गेल मोनो
कि पेड़ा कुसियारसन हम बनल छी।
छीनल हमर सत्व कि जे छल जोगाओल
कि जिनगीकें मोटा लागए आइ भारी।
कि दूरे मने अछि हमर भोर संगी,
पसरल चतुर्दिक एखनि राति कारी।
भकोभन्न लगाए कखनहुँके हमरा
कि छिटकी आ कुश्तीके लागल अछि धारी।
गमा देल सभटा कि जे छल जोगाओल
जे लेलक से घुरियो करै नहि पुछारी।
मुदा गप्प एक्केटा हम्मर रहल अछि
बढ़ल डेग कहियो ने हम अछि घुमाओल।
बिना लक्ष्यकेर वेध कएने घुमब नइ
ने सोची कनेको कते की गमाओल।
शक्तिक उपासक, श्रमक भक्ति हमर
कि जीतब अवश्ये अन्तिम समरमे।
छी डूबल बुझाइत, मुदा पार लागब
ओना छी पड़ल हम एखनि
एहि भँवरमे।
</poem>
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