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नित गोविन्द के गुन गाऊँगी,
तुम कृष्ण चन्द्र के गुन गाना,
सेवा कर प्रभु रिझऊँगी | आप विचार कियो अति सुन्दर मोर विचारन को उर धारो,मैं कर जोर करूँ विनती पति कृष्ण सखा निज मीत तिहारो |जाय मिलो अरु हाल कहो अति कष्ट करे दुःख दैन्य हत्यारो,ये सब बात विचार पति अब कृष्णपुरी तुम शीघ्र सिधारो | मान करे मिलते ही मन-मोहन दूर करें विपदा दुःख थारो,दौलत पाय भजो हरि को पति जीवन को फल नेक विचारो |बात कहूँ फिर नाथ यही हरि दर्शन से यह जन्म सुधारो, दूर न है कबहूं वह ग्राम बसे मन मोहन नन्द दुलारों | भक्त सुदामा ने कहा सुनरी बावरी वाम|झूठा मंगू द्रव्य क्या निर्धन का धन राम ||