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कहीं हो रहा हरि कीर्तन,
कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे,
कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित,
गीता का रहस्य सुनते थे |
कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी,
कहीं मनहर साज सजाते थे,
कहीं भक्त जय बोल बोलकर,
आनन्द उर न समाते थे | कहीं नारियां मंगल गा के, अद्भुत दृश्य दिखाती थी,बड़ी मनोहर वाणी उनकी, कृष्ण कृष्ण गुन गाती थी | कहीं मोर नाचते खुश होकर, कहीं सारस जोड़ा खड़ा हुआ, कहीं स्वर्ण की सड़कें सुन्दर थी, था हीरा पन्ना जड़ा हुआ |जारी बारी और झरोखा, अद्भुत महल दीखते थे,उनमें रहने वाले प्रेमी, पाठ प्रेम का सीखते थे |हर घट भक्ति बिराज रही, छाय रही हरि प्रेम घटा,कोई आनन्द से कृष्ण कहे, कोई बोले प्रभु हैं ऊँची अटा |सभी सुखी जन रहते थे, कौन करे वहाँ का वर्णन,आनन्द अनोखा देख विप्र, कहता था मुख से धन्य धन्य |
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