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<poem>

प्रभु मिले गले से गला लगा
चरणोदक लीनो धो धोकर।
बोले प्रेम भरी वाणी
पुछे हरि बतियां रो-रो कर।
निज आसन पे बैठा करके
सब सामग्री कर में लीनी।
चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
विविध भांति पूजा कीनी।
बोले न मिले अब तक न सखा
तुम रहे कहां सुध भूल गये।
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये।
रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
सब प्रेम से पूजन करती थी।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी।
<poem>
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