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Kavita Kosh से
प्रभु मिले गले से गला लगा
बोले प्रेम भरी वाणी
निज आसन पे बैठा करके
चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
बोले न मिले अब तक न सखा
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी
रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
स्नान कराने को उनको
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