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सेवा कर प्रभु रिझऊँगी |
चंवर मोरछल करते थे,
सेवा से दिल न अघाते थे |
यह आनन्द अद्भुत देख-देख,
द्विज जाने यह जाने न मुझे |
करते हैं स्वागत धोके में,
प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
भक्त की कल्पना सभी,
उर अन्तर्यामी जान गये |
भक्त सुदामा के दिल की,
बाते सब ही पहचान गये |
बोले घनश्याम याद है कछु,
जब हम तुम दोनों पढ़ते थे |
थी कृपा गुरु की अपने पर,
पढ़-पढ़ के आगे बढ़ाते थे |
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