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सब हाल कहे प्रभु दर्शाके |
उस समय रहे बन माहिं दोऊ,
घबराए मारे वर्षा के |
दिल चिंता बढ़ी गुरूजी के,
कारण आंधी के आने से |
बिजली की तड़क निराली थी,
और पानी के बढ़ जाने से |
एक वृक्ष की ओट में, तुम हम बैठे जाय |
वर्षा रुकती थी नहीं, लीनी क्षुधा सताय |
श्री संदीपन गुरु विकल हुए,
श्री कृष्ण कृष्ण मुख से टेरे |
कभी कहें सुदामा बोल बोल,
व्याकुल हो हो बन में हेरे |
तुम कहाँ रैन अंधियारी में,
कहीं बहिर वर्षा सहते हो |
मैं प्रेम विवश यह वचन कहूँ,
सर्वत्र प्रभु तुम रहते हो |
तुम ब्रह्म अनादि अनंत रुप,
श्री कृष्ण रुप मन भाए हो |
प्रभु विद्या जाननहार सकल,
यहाँ विद्या पढ़ने आए हो |
इस तरह गुरूजी हेर हेर,
दोनों की वाट निहारते थे |
न लौटे वन से अभी हाल,
ले ले के नाम पुकारेते थे |
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