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Kavita Kosh से
आर्यावर्त में
महाकाल-सी स्तब्धता
पुत्र सभी बिखरे पडे़
जैसे कंकड़ पत्थर
भस्म में तब्दील
मुनि कपिल के श्राप से
मिलेगा कब कैसे
वंशसूर्यों को पुनर्जीवन
कौन कर सकेगा अवतरण पतित-पावनी गंगा का
समय का सर्वाधिक चुनौती भरा प्रश्न
कहीं कोई हलचल नहीं
अभिमान की प्राणवायु स्थिर-सी
ऐसे खतरनाक क्षणों में बहरे युग के सम्मुख
उद्धारकों के आह्वान से
कहीं बेहत्तर है अस्मिता की रक्षा के लिए
एकाकी घोर तपस्या करना
अब जबकि मुँह लटकाए खड़े
कुछ बिलकुल अनजान
कुछ आदतन टालू और कोढ़ी
बावजूद इसके
ओ मेरे पूर्वजो !
धैर्य धरो
जाह्नवी के साथ
हमसे से ही कोई
आयेगा एक दिन भगीरथ