भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ के लिए / ओम प्रकाश नदीम

1,173 bytes added, 15:32, 16 जुलाई 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सभी ये कह रहे हैं तू जहाँ से उठ गई है माँ
मगर मुझे ये बात सबकी झूट लग रही है माँ

वही कहावतें , वही मुहावरे , वही ज़बाँ
मेरी ज़बान से दरअस्ल तू ही बोलती है माँ

तेरी बहू से जब कभी भी मनमुटाव हो गया
मेरी निगाह में उसे तू ही दिखाई दी है माँ

तेरा ही रूप रंग मुझमें है तेरा ही ढंग है
तेरा जमाल मुझमें है तेरा जलाल भी है माँ

तेरे खयाल-ओ-ख़्वाब हैं तेरी दुआएँ साथ हैं
हज़ार रूप में है तू मगर तेरी कमी है माँ
</poem>
384
edits