भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तन्हा कैसे कटेगी रात कहो
पास बैठो कभी तो पहलू में
कुछ हमारी कुछ अपनी बात कहो
हो गया होगा रो के दिल हल्का
ग़म से भी क्या मिल गयी नजात कहो
ज़िन्दगी में कहाँ सुकूने-दिल
मौत को राहते-हयात कहो
ख़ाक जलकर हासिद हुआ है कौन जल के 'रक़ीब'
किसने खाई है किससे मात कहो
</poem>
384
edits