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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी}}
> किसी को हद से<br>> ज्यादा मत चाहो,<br>> पूरा अस्तित्व ही<br>> खतरे में पड. जाता हॆ ।<br><br>> खोकर अपनी पहचान ,<br>>आदमी न जी पाता है ,<br>> न मर पाता है ।<br>>पूरा अस्तित्व ही<br>>खतरे में पड. जाता है॥<br><br>>किसी से प्रेम इतना न करो <br>>कि वो विवशता क रूप ले ले,<br>>क्योंकि विवशता को ढोने में ,<br>>जीवन व्यर्थ चला जाता है ।<br>>पूरा अस्तित्व ही<br>
खतरे में पड. जाता है॥<br><br>
किसी से प्रेम इतना न करो <br>कि वो विवशता क रूप ले ले,<br>क्योंकि विवशता को ढोने में ,<br>जीवन व्यर्थ चला जाता है ।<br>पूरा अस्तित्व ही<br>खतरे में पड. जाता है॥<br><br>प्रेम जीवन के लिये है अनिवार्य,<br>>किन्तु वह जीवन का लक्ष्य नहीं,<br>>प्रेम में तपने-मिटने के सिवा ,<br>>कुछ हाथ नही आता है?<br>>पूरा अस्तित्व ही<br>>खतरे में पड. जाता है॥<br><br>>जिन्दगी सिर्फ़ प्रेम से चल सकती नहीं,<br>>जिन्दगी एक हीबिन्दु पर रुक सकती नहीं,<br>>किन्तु प्रेम की अनुभूति से -<br>>जीवन संभल -संवर जाता है।<br>>पूरा अस्तित्व ही<br>>खतरे में पड. जाता है॥<br><br>>१९८७ में रचित <br>
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