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|सारणी=हल्दीघाटी / श्यामनारायण पाण्डेय
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'''द्वादश सर्ग: सगनिबर'''
<font size=4>द्वादश सर्ग: सगनिबर्</font><br><br>निर्बल बकरों से बाघ लड़े¸ भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से। घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸ पैदल बिछ गये बिछौनों से॥1॥
ल बकरों से बाघ लड़े¸ <Br/>भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से। <Br/>घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी¸ <Br/>पैदल बिछ गये बिछौनों से।।1।। <Br/><Br/>हाथी से हाथी जूझ पड़े¸ <Br/>भिड़ गये सवार सवारों से। <Br/>घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े¸ <Br/>तलवार लड़ी तलवारों से।।2।। <Br/><Br/>से॥2॥ हय–रूण्ड गिरे¸ गज–मुण्ड गिरे¸ <Br/>कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे। <Br/>लड़ते–लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸ <Br/>भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे।।3।। <Br/><Br/>गिरे॥3॥ क्षण महाप्रलय की बिजली सी¸ <Br/>तलवार हाथ की तड़प–तड़प। <Br/>हय–गज–रथ–पैदल भगा भगा¸ <Br/>लेती थी बैरी वीर हड़प।।4।। <Br/><Br/>हड़प॥4॥ क्षण पेट फट गया घोड़े का¸ <Br/>हो गया पतन कर कोड़े का। <Br/>भू पर सातंक सवार गिरा¸ <Br/>क्षण पता न था हय–जोड़े का।।5।। <Br/><Br/>का॥5॥ चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी¸ <Br/>लेकर अंकुश पिलवान गिरा। <Br/>झटका लग गया¸ फटी झालर¸ <Br/>हौदा गिर गया¸ निशान गिरा।।6।। <Br/><Br/>गिरा॥6॥ कोई नत–मुख बेजान गिरा¸ <Br/>करवट कोई उत्तान गिरा। <Br/>रण–बीच अमित भीषणता से¸ <Br/>लड़ते–लड़ते बलवान गिरा।।7।। <Br/><Br/>गिरा॥7॥ होती थी भीषण मार–काट¸ <Br/>अतिशय रण से छाया था भय। <Br/>था हार–जीत का पता नहीं¸ <Br/>क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय।।8 <Br/>विजय॥8॥ कोई व्याकुल भर आह रहा¸ <Br/>कोई था विकल कराह रहा। <Br/>लोहू से लथपथ लोथों पर¸ <Br/>कोई चिल्ला अल्लाह रहा।।9।। <Br/><Br/>रहा॥9॥ धड़ कहीं पड़ा¸ सिर कहीं पड़ा¸ <Br/>कुछ भी उनकी पहचान नहीं। <Br/>शोणित का ऐसा वेग बढ़ा¸ <Br/>मुरदे बह गये निशान नहीं।।10।। <Br/><Br/>नहीं॥10॥ मेवाड़–केसरी देख रहा¸ <Br/>केवल रण का न तमाशा था। <Br/>वह दौड़–दौड़ करता था रण¸ <Br/>वह मान–रक्त का प्यासा था।।11।। <Br/><Br/>था॥11॥ चढ़कर चेतक पर घूम–घूम <Br/>करता मेना–रखवाली था। <Br/>ले महा मृत्यु को साथ–साथ¸ <Br/>मानो प्रत्यक्ष कपाली था।।12।। <Br/><Br/>था॥12॥ रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर <Br/>चेतक बन गया निराला था। <Br/>राणा प्रताप के घोड़े से¸ <Br/>पड़ गया हवा को पाला था।।13।। <Br/><Br/>था॥13॥ गिरता न कभी चेतक–तन पर¸ <Br/>राणा प्रताप का कोड़ा था। <Br/>वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर¸ <Br/>या आसमान पर घोड़ा था।।14।। <Br/><Br/>था॥14॥ जो तनिक हवा से बाग हिली¸ <Br/>लेकर सवार उड़ जाता था। <Br/>राणा की पुतली फिरी नहीं¸ <Br/>तब तक चेतक मुड़ जाता था।।15।। <Br/><Br/>था॥15॥ कौशल दिखलाया चालों में¸ <Br/>उड़ गया भयानक भालों में। <Br/>निभीर्क गया वह ढालों में¸ <Br/>सरपट दौड़ा करवालों में।।16।। <Br/><Br/>में॥16॥ है यहीं रहा¸ अब यहां यहाँ नहीं¸ <Br/>वह वहीं रहा है वहां वहाँ नहीं। <Br/>थी जगह न कोई जहां जहाँ नहीं¸ <Br/>किस अरि–मस्तक पर कहां नहीं।।17। <Br/>कहाँ नहीं॥17। बढ़ते नद–सा वह लहर गया¸ <Br/>वह गया गया फिर ठहर गया। <Br/>विकराल ब्रज–मय बादल–सा <Br/>अरि की सेना पर घहर गया।।18।। <Br/><Br/>गया॥18॥ भाला गिर गया¸ गिरा निषंग¸ <Br/>हय–टापों से खन गया अंग। <Br/>वैरी–समाज रह गया दंग <Br/>घोड़े का ऐसा देख रंग।।19।। <Br/><Br/>रंग॥19॥ चढ़ चेतक पर तलवार उठा <Br/>रखता था भूतल–पानी को। <Br/>राणा प्रताप सिर काट–काट <Br/>करता था सफल जवानी को।।20।। <Br/><Br/>को॥20॥ कलकल बहती थी रण–गंगा <Br/>अरि–दल को डूब नहाने को। <Br/>तलवार वीर की नाव बनी <Br/>चटपट उस पार लगाने को।।21।। <Br/><Br/>को॥21॥ वैरी–दल को ललकार गिरी¸ <Br/>वह नागिन–सी फुफकार गिरी। <Br/>था शोर मौत से बचो¸बचो¸ <Br/>तलवार गिरी¸ तलवार गिरी।।22।। <Br/><Br/>गिरी॥22॥ पैदल से हय–दल गज–दल में <Br/>छिप–छप करती वह विकल गई! <Br/>क्षण कहां कहाँ गई कुछ¸ पता न फिर¸ <Br/>देखो चमचम वह निकल गई।।23।। <Br/><Br/>गई॥23॥ क्षण इधर गई¸ क्षण उधर गई¸ <Br/>क्षण चढ़ी बाढ़–सी उतर गई। <Br/>था प्रलय¸ चमकती जिधर गई¸ <Br/>क्षण शोर हो गया किधर गई।।24।। <Br/><Br/>गई॥24॥ क्या अजब विषैली नागिन थी¸ <Br/>जिसके डसने में लहर नहीं। <Br/>उतरी तन से मिट गये वीर¸ <Br/>फैला शरीर में जहर नहीं।।25।। <Br/><Br/>नहीं॥25॥ थी छुरी कहीं¸ तलवार कहीं¸ <Br/>वह बरछी–असि खरधार कहीं। <Br/>वह आग कहीं अंगार कहीं¸ <Br/>बिजली थी कहीं कटार कहीं।।26।। <Br/><Br/>कहीं॥26॥ लहराती थी सिर काट–काट¸ <Br/>बल खाती थी भू पाट–पाट। <Br/>बिखराती अवयव बाट–बाट <Br/>तनती थी लोहू चाट–चाट।।27।। <Br/><Br/>चाट–चाट॥27॥ सेना–नायक राणा के भी <Br/>रण देख–देखकर चाह भरे। <Br/>मेवाड़–सिपाही लड़ते थे <Br/>दूने–तिगुने उत्साह भरे।।28।। <Br/><Br/>भरे॥28॥ क्षण मार दिया कर कोड़े से <Br/>रण किया उतर कर घोड़े से। <Br/>राणा रण–कौशल दिखा दिया <Br/>चढ़ गया उतर कर घोड़े से।।29।। <Br/><Br/>से॥29॥ क्षण भीषण हलचल मचा–मचा <Br/>राणा–कर की तलवार बढ़ी। <Br/>था शोर रक्त पीने को यह <Br/>रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।30।। <Br/><Br/>बढ़ी॥30॥ वह हाथी–दल पर टूट पड़ा¸ <Br/>मानो उस पर पवि छूट पड़ा। <Br/>कट गई वेग से भू¸ ऐसा <Br/>शोणित का नाला फूट पड़ा।।31।। <Br/><Br/>पड़ा॥31॥ जो साहस कर बढ़ता उसको <Br/>केवल कटाक्ष से टोक दिया। <Br/>जो वीर बना नभ–बीच फेंक¸ <Br/>बरछे पर उसको रोक दिया।।32।। <Br/><Br/>दिया॥32॥ क्षण उछल गया अरि घोड़े पर¸ <Br/>क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर। <Br/>वैरी–दल से लड़ते–लड़ते <Br/>क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर।।33।। <Br/><Br/>पर॥33॥ क्षण भर में गिरते रूण्डों से <Br/>मदमस्त गजों के झुण्डों से¸ <Br/>घोड़ों से विकल वितुण्डों से¸ <Br/>पट गई भूमि नर–मुण्डों से।।34।। <Br/><Br/>से॥34॥ ऐसा रण राणा करता था <Br/>पर उसको था संतोष नहीं <Br/>क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह <Br/>पर कम होता था रोष नहीं।।35।। <Br/><Br/>नहीं॥35॥ कहता था लड़ता मान कहां <Br/>कहाँ मैं कर लूं लूँ रक्त–स्नान कहां। <Br/>कहाँ। जिस पर तय विजय हमारी है <Br/>वह मुगलों का अभिमान कहां।।36।। <Br/><Br/>कहाँ॥36॥ भाला कहता था मान कहां¸ <Br/>कहाँ¸ घोड़ा कहता था मान कहांकहाँ? <Br/>राणा की लोहित आंखों आँखों से <Br/>रव निकल रहा था मान कहां।।37।। <Br/><Br/>कहाँ॥37॥ लड़ता अकबर सुल्तान कहां¸ <Br/>कहाँ¸ वह कुल–कलंक है मान कहांकहाँ? <Br/>राणा कहता था बार–बार <Br/>मैं करूं करूँ शत्रु–बलिदान कहांकहाँ?।।38।। <Br/><Br/>॥38॥ तब तक प्रताप ने देख लिया <Br/>लड़ रहा मान था हाथी पर। <Br/>अकबर का चंचल साभिमान <Br/>उड़ता निशान था हाथी पर।।39।। <Br/><Br/>पर॥39॥ वह विजय–मन्त्र था पढ़ा रहा¸ <Br/>अपने दल को था बढ़ा रहा। <Br/>वह भीषण समर–भवानी को <Br/>पग–पग पर बलि था चढ़ा रहा।।40। <Br/>रहा॥40। फिर रक्त देह का उबल उठा <Br/>जल उठा क्रोध की ज्वाला से। <Br/>घोड़ा से कहा बढ़ो आगे¸ <Br/>बढ़ चलो कहा निज भाला से।।41।। <Br/><Br/>से॥41॥ हय–नस नस में बिजली दौड़ी¸ <Br/>राणा का घोड़ा लहर उठा। <Br/>शत–शत बिजली की आग लिये <Br/>वह प्रलय–मेघ–सा घहर उठा।।42।। <Br/><Br/>उठा॥42॥ क्षय अमिट रोग¸ वह राजरोग¸ <Br/>ज्वर सiन्नपात सन्निपात लकवा था वह। <Br/>था शोर बचो घोड़ा–रण से <Br/>कहता हय कौन¸ हवा था वह।।43।। <Br/><Br/>वह॥43॥ तनकर भाला भी बोल उठा <Br/>राणा मुझको विश्राम न दे। <Br/>बैरी का मुझसे हृदय गोभ <Br/>तू मुझे तनिक आराम न दे।।44।। <Br/><Br/>दे॥44॥ खाकर अरि–मस्तक जीने दे¸ <Br/>बैरी–उर–माला सीने दे। <Br/>मुझको शोणित की प्यास लगी <Br/>बढ़ने दे¸ शोणित पीने दे।।45।। <Br/><Br/>दे॥45॥ मुरदों का ढेर लगा दूं दूँ मैं¸ <Br/>अरि–सिंहासन थहरा दूं दूँ मैं। <Br/>राणा मुझको आज्ञा दे दे <Br/>शोणित सागर लहरा दूं मैं।।46।। <Br/><Br/>दूँ मैं॥46॥ रंचक राणा ने देर न की¸ <Br/>घोड़ा बढ़ आया हाथी पर। <Br/>वैरी–दल का सिर काट–काट <Br/>राणा चढ़ आया हाथी पर।।47।। <Br/><Br/>पर॥47॥ गिरि की चोटी पर चढ़कर <Br/>किरणों निहारती लाशें¸ <Br/>जिनमें कुछ तो मुरदे थे¸ <Br/>कुछ की चलती थी सांसें।।48।। <Br/><Br/>सांसें॥48॥ वे देख–देख कर उनको <Br/>मुरझाती जाती पल–पल। <Br/>होता था स्वर्णिम नभ पर <Br/>पक्षी–क्रन्दन का कल–कल।।49।। <Br/><Br/>कल–कल॥49॥ मुख छिपा लिया सूरज ने <Br/>जब रोक न सका रूलाई। <Br/>सावन की अन्धी रजनी <Br/>वारिद–मिस रोती आई।।50।। <Br/>आई॥50॥ <Br/poem>