भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुख - 3 / प्रेमघन

818 bytes added, 16:32, 20 अगस्त 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
थकी विपरीत की जीत रनै,
::न सकी स्रम सों सुकुमारि अँगेज।
लियो अवलम्ब अनूपम आनन,
::लाल तकीयन पैं सजी सेज॥
लगी बरसै सुखमा घन प्रेम,
::मनो लरि लाख गुनो लहि तेज।
धर सिर के तर राहु को सोय,
::रह्यो है कलानिधि काढ़ि कलेज॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits