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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश प्रत्यूष
|संग्रह=
}}
[[Category:कविता]]
{{KKCatKavita}}<poem>
चीटियां बहुत हैं यार
मीठा तो मीठा करती है नमकीन तक से प्यार
पकाऊं चावल चाहे रोटी
लिखा है किस्मत में एक शाम उपवास
कितना चालूं आटा
कितना ढकूं ग्लास
बस इतनी सी बात
दे मग भर पानी
थोड़ी तेज बास
</poem>
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[[Category:कविता]]
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चीटियां बहुत हैं यार
मीठा तो मीठा करती है नमकीन तक से प्यार
पकाऊं चावल चाहे रोटी
लिखा है किस्मत में एक शाम उपवास
कितना चालूं आटा
कितना ढकूं ग्लास
बस इतनी सी बात
दे मग भर पानी
थोड़ी तेज बास
</poem>