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कोशिश / मुकेश प्रत्‍यूष

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तुम
हमेशा अकेली नजर आती हो
भट्ठी में फूलती
एक अदद रोटी की तरह
जिसे पाने के लिए
उगाता रहा हूं मैं
अपनी हथेलियों पर
- अनगिनत छाले
काफी बचपन से

</poem>
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