भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप' }} {{KKCatGhazal}} <poem> आ रही...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>

आ रही बे-हिसाब की खुशबू
मेरे साहिब-ज़नाब की खुशबू I

उनकी खुशबू के सामने फीकी
गुल-हज़ारा गुलाब की खुशबू I

उनके छूने से , सुर महकते हैं
गूँज उठती , रबाब की खुशबू I

सारी दुनिया के इत्र एक तरफ़
और इक उनके बाब की खुशबू I

हुस्ने-शादाब , मैं न होती 'दीप'
वो न होते , शबाब की खुशबू I
</poem>