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| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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हमने माना कि हम नहीं अच्छे
पर किसी पे सितम नहीं अच्छे I

मोतबर उनके सिवा कोई नहीं
आप कहते हैं गम नहीं अच्छे ?

इश्क़-ओ-वस्लो-हिज़्र सब अच्छे
हुस्न-ओ-पेचो-ख़म नहीं अच्छे I

दुश्मनी किसका घर न फूकेंगी ?
छोड़िये ना ये बम , नहीं अच्छे I

आदमी तो ये 'दीप' , अच्छा है
कम के करम नहीं अच्छे I
</poem>