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{{KKRachna
|रचनाकार=मजाज़ लखनवी
|संग्रह=आहंग/ मजाज़ लखनवी
}}
देखना जज़्बे-मुहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पै '''<sup>1</sup>''' है उस शोख़ का सर आज की रात
और क्या चाहिए अब ऎ ऐ दिले-मजरुह! '''<sup>2</sup>''' तुझे
उसने देखा तो ब-अन्दाज़े दिगर आज की रात
नूर'''<sup>3</sup>'''- ही-नूर है जिस सिम्त '''<sup>4</sup>''' उठाऊँ आँख
हुस्न-ही-हुस्न है, ताहद्दे-नज़र '''<sup>5</sup>''' आज की रात
अल्लाह-अल्लाह वह पेशानिए-सीमीं का जमाल'''<sup>6</sup>'''
रह गई जम के सितारों की नज़र आज की रात
नग़्मा-ओ-मै का '''<sup>7</sup>''' यह तूफ़ाने-तरब '''<sup>8</sup>''' क्या कहिए!
घर मेरा बन गया ख़ैय्याम का घर आज की रात
अपनी रफ़अ़त पै जो नाज़ाँ '''<sup>9</sup>''' हैं तो नाज़ाँ ही रहें
कह दो अंजुम से '''<sup>10</sup>''' कि देखें न इधर आज की रात
उनके अल्ताफ़ का '''<sup>11</sup>''' इतना ही फ़सूँ '''<sup>12</sup>''' काफ़ी है
कम है पहले से बहुत दर्दे-जिगर आज की रात
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