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Kavita Kosh से
रोज़ सुबह, मुंहमुँह-अँधेरेअंधेरे
दूध बिलौने बिलोने से पहले
माँ
आराम से
::::तारीफ़ों में बँधीं बंधीं
::::माँ
::::जिसे मैंने कभी
::::सोते
::::नहीं देखा
जवान होने पर
एक प्रश्न घुमड़ आया है --
::::पिसती