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भय / मोहन राणा

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18.8.2002
 
 
 
 
 
 
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|रचनाकार=मोहन राणा
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा
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जिसका नहीं कोई चेहरा
 
 
 
यह हवा का जहाज
यात्रा
यह उड़ान
यह खिड़की बादलों में,
मैं हूँ
अगर मूँद लो अपनी आँखें तुम एक पल
वह आवाज तुम्हारे मन में
जिसका नहीं कोई चेहरा,
 
 
 
 
 
29.12.2004
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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क्या तुमने भी सुना
 
 
चलती रही सारी रात
तुम्हारी बेचैनी लिज़बन की गीली सड़कों पर
रिमझिम के साथ
मूक कराह कि
जिसे सुन जाग उठा बहुत सबेरे,
कोई चिड़िया बोलती झुटपुटे में
जैसे वह भी जाग पड़ी कुछ सुनकर
सोई नहीं सारी रात कुछ देखकर बंद आँखों से !
चलती रही तुम्हारी बेचैनी
मेरे भीतर
टूटती आवाज़ समुंदर के सीत्कार में
उमड़ती लहरों के बीच,
चादर के तहों में करवट बदलते
क्या तुमने भी सुना उस चिड़िया को
 
 
 
 
 
6.4.2002 सज़िम्ब्रा, पुर्तगाल
 
 
 
 
 
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जिया कहने भर के लिए
 
 
कभी ना समाप्त होने वाला दिन
डूबते और उगते सूरज बीच
मैं दौड़ता किसी किनारे को छूने
घूम कर पहुँचता वहीं
 
दीवार पर चढ़ती बेल
दीवार पर फैलती बेल
दीवार पर बेल
आकाश पर चढ़ता दिन
आकाश पर फैलता दिन
आकाश पर दिन
कागज पर लिखा शब्द
कागज पर जड़ा शब्द
कागज पर शब्द
 
कोई अनुभव अधूरा
उसे नाम दे कर कहता
हुआ पूरा यह
जिया कहने भर के लिए
 
 
 
 
 
17.3.1996
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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आता हुआ अतीत
 
आता हुआ अतीत,
भविष्य जिसे जीते हुए भी
अभी जानना बाकी है
 
दरवाजे के परे जिंदगी है,
और अटकल लगी है मन में कि
बाहर या भीतर
इस तरफ या उधर
यह बंद है या खुला!
किसे है प्रतीक्षा वहाँ मेरी
किसकी है प्रतीक्षा मुझे
अभी जानना बाकी है
 
एक कदम आगे
एक कदम छूटता है पीछे
सच ना चाबी है ना ही ताला
 
 
 
 
30.5.2005
 
 
 
 
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