भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुरली चंद्राकर |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> (...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुरली चंद्राकर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
(कारी में गाया गया)
हो~अ~रे सुवना कहिबे धनिल गोहराय
लोखन होगे सोर संदेस नोहर होगे
परछी म परछो लेवाए रे सुवना
तन मौरे मन मौहा महक मारे
लुगरा के लाली लुलुवाय रे सुवना
कुहकथे कोयली करेजा हुदक मारे
आँखी के कजरा बोहाय रे सुवना
सैता के सुतरी सांकुर भइगे संसो म
सैया सैया साँस सुसुवाय रे सुवना
मन रंग कुसुम कुसुम रंग धनि होगे
आंखिच आँखी म समाय रे सुवना
भूलन खुंदा के भुलागे बछर होगे
धनि लाबे संग समझाय रे सुवना
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मुरली चंद्राकर
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
(कारी में गाया गया)
हो~अ~रे सुवना कहिबे धनिल गोहराय
लोखन होगे सोर संदेस नोहर होगे
परछी म परछो लेवाए रे सुवना
तन मौरे मन मौहा महक मारे
लुगरा के लाली लुलुवाय रे सुवना
कुहकथे कोयली करेजा हुदक मारे
आँखी के कजरा बोहाय रे सुवना
सैता के सुतरी सांकुर भइगे संसो म
सैया सैया साँस सुसुवाय रे सुवना
मन रंग कुसुम कुसुम रंग धनि होगे
आंखिच आँखी म समाय रे सुवना
भूलन खुंदा के भुलागे बछर होगे
धनि लाबे संग समझाय रे सुवना
</poem>