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Kavita Kosh से
की रतन अउ नवाधा रमायन!
सतसंग भागवत कथा घलव
पन बाहिर कुकुर कटायेन*!
बात बात म ओरझत फिरथें
बिरथा रार बढ़ाथें!
छिन भर म जुग भर के जोरे
नता ल होम चढ़ाथें !
नेम धेम मनवइया ओकर ले
दिन दिन दुरिहावत हें!
पढ़ंता गुनवंता मन के
आज हे घलव जमाना!
उद्दिम करके बुध बल आँछत*
जोरत हावंय खजाना!
गुन के पीछू राज राज अउ
नवा समे के फैसन!
पुरती खातिर उदिम करत हें
जेकर लखारस* जइसन!
गाँव गली गुंडी घर अंगना
बैठक चौरा भावय!
बिना मूर जगरत हें!
बिना जतन के बेाम जइसे
इहाँ उहाँ बगरत* हें!
एक हाथ खीरा के लबरा
नौ हाथ बीज बतइया!