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|रचनाकार=हरि ठाकुर
|संग्रह=
}}
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बादलों ने हाथ मेरा
पकड़ कर मुझसे कहा
खोल अपने पंख
सागर पार तक आओ चलें।
मैं अपाहिज-सा पड़ा था
देवता के पाँव पर
भाग्य ने मुझको लगाया
साँस के हर दाँव पर
किरन मंत्रों से जगा कर
सूर्य ने मुझसे कहा
छोड़ यह चौखट
सुबह के द्वार तक आओ चलें।
प्रार्थना का स्वर लबालब
आँसुओं से भर गया
पत्थरों पर फूल का
सौरभ असर कुछ कर गया
ह्रदय की ज्वाला बुझा कर
आँसुओं ने तब कहा
छोड़ यह पनघट
मनुज के प्यार तक आओ चलें।
</poem>
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}}
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बादलों ने हाथ मेरा
पकड़ कर मुझसे कहा
खोल अपने पंख
सागर पार तक आओ चलें।
मैं अपाहिज-सा पड़ा था
देवता के पाँव पर
भाग्य ने मुझको लगाया
साँस के हर दाँव पर
किरन मंत्रों से जगा कर
सूर्य ने मुझसे कहा
छोड़ यह चौखट
सुबह के द्वार तक आओ चलें।
प्रार्थना का स्वर लबालब
आँसुओं से भर गया
पत्थरों पर फूल का
सौरभ असर कुछ कर गया
ह्रदय की ज्वाला बुझा कर
आँसुओं ने तब कहा
छोड़ यह पनघट
मनुज के प्यार तक आओ चलें।
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