भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खण्ड-3 / आलाप संलाप / अमरेन्द्र

12 bytes removed, 09:51, 25 दिसम्बर 2016
सच ही कहा कि कविता मेरी दोषयुक्त-गुणहीन
लेकिन हित के और सहित के आसन पर आसीन
 
‘‘अभिधा में ही बात करूंगा कलियुग की ताकत है
मैं भी तीसरी आँख शब्द की जान रहा हूँ लेकिन
काम करेंगी दो आँखें हीं, जैसे, खिला-खिला दिन
 
‘‘कविता का तो अर्थ तभी है, जब हो भावक-भावुक
और हवन से उठा हुआ ज्यों धुआं चिता का धू-धू
बहने लगता घोर भयावह भय मन में है हू-हू
कर्मकाण्ड के महाजाल में माया का वह नत्र्तननर्तन अवश-विवश उस मेरे मन पर कलि का घोर विवत्र्तन विवर्तन
टूटा हुआ धनुष वेदी पर हविश यज्ञ का अच्युत
उससे भी कुछ अधिक दीन हूँ धरती पर मैं प्रत्युत ।’’
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,574
edits