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Kavita Kosh से
जेा जितना ही झूठा होता वो उतना ही बने महान।
कौन आकल न आकलन कर पायेगा किस दामन पर कितने दाग
मेरा गाँव , तुम्हारी दिल्ली भ्रष्टाचार में एक समान।
छापा पड़ा तो उतर गया कितने चेहरों से आज नक़ाब
भरा पड़ा है काला धन अफ़सर , नेता सोने की खान।
जिसको देखेा परेशान है, जनता की ही सबको फिक्ऱ
भेाली - भाली जनता को ही ठगना है सबसे आसान।
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