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तिजऊ के मांईलोगन जग्गी, करय पहटनिन अस कंस कामओला श्रम के कीमत मिलिहय, उही भरोसा सब परिवार।तिजऊ के लइका नाम हे कातिक, जेहर हा अभि पोल्हुवा बालकाम ले लाइक अड़िल युवक तंह, सोनू के घर बनही भृत्य।उहू घलो रटाटोर कमाहय, करिहय बुता जमों परिवारतभे कर्ज ले मुक्त हो सकही, सब अपराधो ले आजाद”अब लतेल ग्रामीण ला पूछिस, “करे हवन हम जेन नियावओहर उचित या अनुचित होइस, बिन संकोच कहव तुम साफ”हुआं-हुआं ग्रामीण करिन अउ, पोंगू घलो समर्थन दीस-“सोच-विचार न्याय टोरे हव, होय सुधार नियम कानून।अब अपराध मं लगगे अंकुश, अपराधी हा पाइस सीखदार-भांत हा ठीक चुरिस हे, तब हम काबर करन विरोध”कउनो उफ तक कहन सकत नइ, चलत हवय सोनू के राजलीम हा आमा राजबजंत्री, तब ले मानत भरे समाज।सोनू मण्डल तिजऊ ला बोलिस- “दीन पंच मन निर्णय ठोसतंय अउ तोर गृहस्थ जमों झन, आज ले बनगेव नौकर मोर।तुम निर्णय ला स्वीकारत हव, अगर उदेली कहिदो साफमगर एक ठन याद ला राखव, बाद मां मत देना कुछ दोष”तिजऊ कहां कर सकत उदेली, मान लीस पंच के आदेशबिन कीमत के श्रमिक अमर के, सोनू मुड़ उठात कर गर्व।सोनसाय ला तिजऊ हा बोलिस- “पंच के निर्णय हा स्वीकारलेव मोर ले कठिन परिश्रम, या तुम मारो हर क्षण लात।लेकिन मोर पुत्र कातिक ला, प्राण बचाय के अवसर देवमंय हा कष्ट ले मुक्ति पांव नइ, पर कातिक सुख पावय खूब।एक बिस्कुटक मंहू सुने हंव, समय हा बदलत गति अनुसारपेड़ मं पहली पतझड़ लगथय, लेकिन बाद नवा नव पान”भृत्य बने के रश्म पूर्ण तंह, मनखे चिल्लावत भर जोश-“होय पंच परमे•ार के जय, सोनसाय के जय-जयकार।”सब ग्रामीण अपन घर लहुटिन, सुद्धू – बिसरु खुद घर कोततिजऊ इंकर तोलगी धर आवत, अपन दर्द ला तरी दबात।तिजऊ कथय- “सोनू हा घर लिस, दुख बद ला डारिस मुड़ मोरअब मर जाना उचित जनावत, मोर भविष्य मं घुप अंधियार।”गिरिस तिजऊ के सिरी तरी तन, जीवन जिये ले होत हताशबिसरु हा ओला जियाय बर, लेवत हवय तिजऊ के पक्ष-“जन्म ले कोन बनत अपराधी, मगर अभाव ले गलती राहअगर जरुरत पूर्ण होत तब, कोन चोराये देतिस जान!यदपि आत्महत्या के करना, निश्चय आय साहसिक कर्मह्मदय कठोर – निघरघट मनसे, अपन प्राण हरे बर दमदार।लेकिन प्रकृति हा जीवन दिस, रउती भर तंय उम्र ला पालसुख-दुख, अच्छा-बुरा झेल तंय, निश्चय यहू साहसिक काम।”सुद्धू कथय- जमों के दुर्गति, बोकरा माने कब तक खैर!सोनू राखे खोप मोर पर, निश्चय लिही एक दिन दांव।पर एकर मतलब नइ अइसन, हतोत्साह भर त्यागन जानअगर हमर सहि सबो सोचिहंय, मरघट मं परिवर्तित वि•ा।रखना हे आशा भविष्य बर, जिनगी चला फिक्र – गम ठेलतोर टुरा कातिक अभि नान्हे, बन के युवक दिही सुख खूब”सुद्धू हा सम्बोधन देवत, तिजऊ ला ओकर घर पहुंचैसतत्पश्चात अपन घर आथय, बिसरु ला सब व्यथा बतैस-“जे वि•ाास करत दूसर पर, ओहर बाद मं धोखा खातजेन सह्मदय निश्छल मनसे, कपटी ले छल ला अमरात।सोनसाय अउ तिजऊ दुनों झन एक जान संगवारी।पर सोनू हा धन खंइचे बर मितवा संग गद्दारी।सोनू अगर मदद ला मांगय, तिजऊ हा फोकट मं अमरायमगर तिजऊ के बखत अंड़य तंह, सोनू बाढ़ी-ब्याज लगाय।सोनू ला मितान समझिस तब, ओकर चई भरिस सब चीजतिजऊ के अन – धन हा खिरगे तब, वर्तमान हालत हे दीन।अपन चीज – बस फूंक ललावत, तिजऊ बिचारा सिधवा आजकतको के हक छिन सोनू हा, मण्डल बनगे गिधवा बाज।धन ला कउनो पथ ले सकलय, पर ओहर पूंजी धन आयओला जउन रपोटत हे कंस, ओकरेच होत प्रतिष्ठा पूछ।सोनू हवय भ्रष्ट गरकट्टा, पर ओकर तिर धन के शक्तितब ओकर तन न्याय हा घूमत, जमों डहर पावत हे जीत।”सुद्धू हा फिर कहिथय कुछ रुक- “हम्मन मरन तिजऊ पर सोगपर जीवन-स्तर सुधरय नइ, दुख हा रहिहय खमिहा गाड़।सोनसाय के दोष खोजबो, पर धन ला कभु सकय न बांटमानव सब ले घृणा करत पर, पूंजी पर हरदम आसक्ति।मानव हा उपदेश ला देथय, साधु- संत जीवन निर्वाहपर धन-पद-यश-मान पाय बर, मानव करथय सतत प्रयत्न”बिसरु कहिथय- “धन के वितरण, संभव दिखत क्रांति के बादमोला जप जप नींद जनावत, भेदभाव नइ एकर पास।
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