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ठेलहा बइठे मं तन लुलसा-ऊपर ले बदनामी।काम करे मं समय व्यवस्थित-ऊपर मिलत प्रशंसा।काम के पूजा करिहंव जेकर ले होथय जग आगे।महिनत मं तन लोहा बनथय-बनन पाय नइ कामी।समय हा रेंगत सुरधर-सरलग, मौसम घलो पुरोथय कामओसरी पारी पुछी धरे अस, वर्षा ऋतु-जड़काला-घाम।नेत लगा-अब पानी गिरगे, अड़बड़ कृपा करिस बरसातअपन बुता मं किसान भिड़गें, फुरसुद कहां करे बर बात!छोड़ बिस्कुटक कथा कंथली, नांगर ला सम्हरात किसानबइला मन ला मसक खवा अब, जावत खेत छिते बर धान।गीस गरीबा अपन खेत मं, हरिया धर के छीतत धाननांगर फांद-रेंगावत कोरलग, चलत माल मन छाती तान।हो हो, तत तत, डिर डिर, चच चच, देत गरीबा रोंठ अवाजदूुसर डहर के कुछ सुध-बुध नइ, काम पुरोय के करथें फिक्र।बेर लुकाय हवय बादर मं, कतका टेम ज्ञात नइ होतमंझन होगिस तेकर गम नइ, अपन काम भर मं बिपताय।अकता बेर जोंत नांगर ला, आत गरीबा खुद के गेहसनम के दद्दा नाम फकीरा, तेहर मिलिस देखावत स्नेह।कहिथय -“बिरता रुप बदलथय, कभू रहय नइ एक समानजे लइकुसहा तेन युवक हे, अउ जवान हा बुढ़ऊ सियान।तंय बालकपन मं इतरवला, काजर पोत देस मुंह मोरलेकिन अब हस अड़िल जवनहा, महिनत करथस मरत सजोर।”मंदरस भाखा कथय गरीबा -“तंय बढ़ाय प्रेम-अमृत सींचतोरेच आशीष ले मंय उत्तम, कमल फूल तरिया के बीच।”“बाबू, तोर आचरण उत्तम, बात के उत्तर निश्छल देतधान के बीज कहां ले पाये, कोन धनी हा बाढ़ी दीस?”“अपन जांग का खोल देखावव, का बतांव जीवन के हाल!बड़ मुस्कुल मं बांच पाय हम, झेले हवन बिपत-अंकाल।धनवा तिर ले ऋण उठाय हम, ओकर एवज देय हन खेतफेर उधार धान लाने हंव, तभे भराइस भूमि हा नेत।”“एक जानबा ठीक किहिस हे- कृषक हा ऋण मं लेवत जन्मजीवन भर कर्जा मं जीयत, मरे के छिन मं ऋण हा साथ।पर तंय ठीक काम जोंगे हस, छींचे हवस खेत भर धानविपत हा आगू छेंकत रहिथय, पर मनसे हा बढ़य सदैव।”दुनों सुहातू गोठला करके, ओहिले चलिन ओ तिर ला छोड़अपन मकाम गरीबा अमरिस, धोइस साफ चिखलहा गोड़।कोठा गीस माल मन के तिर, पयरा भुंसा ला धर के साथधन मन ला पुचकार खवाइस, हलू-हलू सारिस एक सांस।बइला मन हा बिधुन हो – खावत, मुड़ी हलात – पुछी छटकारकोंड़हा नून मिले जल पीयत, पागुर भांजत-लेत डकार।अब ओ ठउर गरीबा त्यागत, ओकर पेट मरत हे भूखसुक्सा साथ भात ला हेरिस, पाटत पेट जतिक मन साद।एकर बाद हाथ धोइस सरका भोजन के थारी।सुखी नाम एक मनसे आइस बचपन के संगवारी।सुखी कथय -“तंय हवस निफिकरी, तोर चलत हे सरलग कामलेकिन मोर बुता हा अंड़गे, तेकर कारण नींद हराम”पीढ़ा रख गोठियात गरीबा- “यहदे तीर सुखी आ बैठकइसे फिफिया आय इहां तक, का कारण हस दुखी उदास?”“अपन बिखेद बतात तोर तिर, झन हंस खुल खुल सुनते साठसुर के साथ खेत ला जोंतत, नांगर ला जरकुल धर लीस।मेड़ मं हावय पेड़ बहुत ठक, ओकर जर फइले हे खेतजर मं हल के नास हा फंसगे, बइला मन आगुच तन जात।सेवर नांगर रट ले टूटिस, कइसे ओहिले काम बजांव!यदि उबरत तब मदद ला कर दे, धर आसरा तोर तिर आय”मित्र के दुख सुन कथय गरीबा – “मोर रहत तंय झन कर हायजउन वस्तु आवश्यक तोला, बिन ढचरा मंय देहंव जल्द।गुरतुर भाव चिरई के बीच मं, फिर हम बुद्धिमान इन्सानएक दुसर के बिपत ला टारन, झनिच करन पर के हिनमान।तोला आज जिनिस के जरुरत, तब मंय हा सहाय कर देतकल तंय मोर सहायता करबे, इसने होत आदान प्रदान।”चोक्खा नांगर हेर गरीबा, सुखी के खांदे पर रख दीससुखी के मांग हा पूरा होगे, उहां ले निकलिस हे तत्काल।आगू मिलिस वृद्ध सुद्धू हा, बारी ला रुंधत कर यत्नसाबर मं जमीन ला कोड़त, अंदर तक गड्ढा बन जात।तंह बबूल के डाल ला खोंचत, गड्ढा मं मट्टी भर देतमट्टी ला साबर मं धांसत, होत डाल मन अंड़ के ठाड़।बांस ला दू फलका मं चीरत, डाली मं ओला लपटैसरस्सी मं कड़कड़ ले बांधिस, होगे सफल रुंधई के काम।ओकर श्रम ला सुखी ला देखिस, तंहने कहिथय भर आश्चर्य-“तोर देंह हा थके चुराचुर, आंखी घलो होय कमजोर।उम्र बचे हे बस अराम बर, जादा महिनत ला झन जोंग,अगर बुता बर जिद्द धरे हस, अउ कर सकत हवस कल ज्वार”सुद्धू कथय -“कोन हा जानत, कल के पूर्व निकलगे जान!कल हा अंधरी गुफा मं छुपगे, ओकर पर झन करव यकीन।वर्तमान ला महत्व देवव, प्राप्त वक्त के सद उपयोगतभे मंहू मिहनत बजात हंव, वक्त के चिड़िया झन उड़ जाय।”“तोर नीति अपनाय के लाइक, मगर मोर हे एक सलाह-करतिस काम गरीबा हा अब, ओकर खांद डार सब भार।”“करत गरीबा बुता शक्ति तक, ओहर दबे काम के भारजीवन भर जांगर पेरे हंव, आज घलो करथंव कुछ काम।
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