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कथरी ओढ़ कोन अब सोवय, मुंह झुलझुल पर पछल गे रातसुकुवा ऊग ठाड़ होगे अउ, कुकरा कुकरूँग कूं चिल्लात।गांव गंवई के घड़ी इही मन, बता सकत के समय कतेक!सरका काम कभू नइ मांगय – हमर मंजूरी देव अतेक।खटिया छोड़ कृषक मन उठगें, आय टेम ओलहा निपटायआंख धोवई ला घलो छोड़ के, धन ला देवत पयरा खाय।“”मंय बासी ला कभू खांव नइ, कहां तात ला सकत अगोर!अगर नंगरही टेम मं बिलमत, खरथरिहा कहिहंय – कमचोर।”बइला मन के पेट हा भरगे, तंहने सनम होत तैयारजोंता नांगर लउड़ी गांकर, तुमड़ी भर जल धर लिस साथ।ककरो ले झन पिछुवा जावय, तइसे बढ़त रबारब पैरधन मन मार कदम्मा दउड़त, भर्री पहुंच के ठहरन पैन।कांसी बन दूबी बउछाए, हल नइ रेंगत धर के रासआखिर “राउत’ मड़ा के रेंगत, तब धरती मं धंसथय नास।कोरलगहा धर चलत सनम हा, पर पठले भुंइया अंड़ जातहल के मुठिया जमा के दाबत, ढेला मन ऊपर आ जात।बइला मन हा खंइचत नांगर, उंकरो लोढ़िया – भरगे पांवतब ले कोंघर के काम बजावत, हारत कहां काम के दांव!गांकर ला अब उड़ा सनम हा मारत दूसर हरिया।नंगत ताकत ला खावत – तब निकलत माटी करिया।देवत देह पछीना कारी, नस मन चरचर दर्शन देतमुंह चोपियात पियास जनावत, यद्यपि जल ला रूक रूक लेत।करत क्वांर के घाम बदरहा, होत सनम के चकचिक आंखपेट पोचक के अंदर चल दिस, मुंह झोइला जस करिया राख।पाठक मन ले एक निवेदन – तुमन सनम पर दया देखावबपुरा कतका देह हा टोरय, अब तो नांगर ला ढिलवाव।नास लुका के ढेला अंदर, सनम हा वापिस होत मकानतिही बीच डकहर हा आथय, रोक लीस फट सनम के पांव।कहिथय -“”जइसे तोर माल मन, काम करे बर बहुत सजोरउसने बने सपुतहा धन ला, लान लेंव मंय घर मं मोर।बुतकू ऊपर अैतस बेवस्ता, ओला नाप देंव मंय कर्जलेकिन ओहर पटा सकिस नइ, बढ़त चलिस ऋण ब्याज के रोग।ऋण के बल्दा मं बिसाय हंव, बुतकू के बइला ला आजअब तो निश्चय सिद्ध तोर अस, बचे हवय जे ओलहा काज।”डकहर बड़नउकी ला मारत, खुद ला सिद्ध करत हे ऊंचओतका तक मं तुष्टि मिलिस नइ , तब अब करत अपन तारीफ –“”अपन कथा ला मंय बतात हंव, यद्यपि तंय जानत सब भेदईश्वर छाहित हवय मोर पर, तब मंय बढ़ेंव बिपत ला छेद –एकर पूर्व तोर अस कंगला, बिन पूंजी के रेहेंव गरीबसप सप भूख पेट हा झेलय, स्वादिल जिनिस चिखय नइ जीब।घर कुरिया तक बिक गिस तंहने, मंय बम्बई कमाय चल देंवचुहा पसीना मिहनत करके – अड़बड़ अक धन ला सकलेंव।अब मंय वापिस गांव मं आके, बने चलावत हवंव दुकानमोला कष्ट दीस तेकर ले, मंय प्रतिशोध लेत हंव तान।”अतका कहि के डकहर सल्टिस, सनम अपन घर सरसर जातथोरिक मं बुतकू हा मिलथय, जेकर मुंह दुख के बरसात।बुतकू रोथय -“”का बतांव मंय, डकहर छीन लेग गे जानजउन माल मन मोर जिन्दगी, ओमन होगिन आज बिरान।दूनों धन मन कुबल सपुतहा, लखिया – धंवरा उनकर रंगलइका मन फोड़ी बदथंय तस, चारा चरंय दुनों मिल साथ।उनकर पूंछ लाम पतरेंगा, सरग पतालिया मोहक सींगउनकर मुंह हा लमचोचका नइ, कमई मं ताफड़ टींगे टींग।ओमन ला वन मं चराय बर, एक दिवस मंय धर के गेंवएक शेर हा आइस तंहने, मंय हा डर मं चुप छुप गेंव।बइला मन ला देख शेर हा, पहुंच गीस खब उंकर समीपदेख शेर ला बइला मन हा, आगू बढ़िन खिंचे बर जीब।आंख बरनिया – पांव ला खुरचत, क्रोध मं भर फर्रेटिन जोरशेर सुकुड़दुम हो के खसकिस, तब बच पाइस जीवन मोर।दूनों बइला मन फुरमानुक, काम करे बर त्यागंय ढेरबिगर मुंहू के रिहिन जानवर, चलन पियारुकाम बजांय।तेन कमइया ला डकहर हा, लउठिच लउठी झड़किस तानधन मन सींग हला के रहिगें, पर नइ छोड़िन मोर मकान।हकिया के डकहर हा बोलिस -“”जब्दा हवय तोर ए मालकरत डायली – खुर ला रोपत, अपन माल ला तिंही निकाल।”मोरेच सम्मुख मोर प्राण के, डकहर करिस हइन्ता खूबपर मंय कहां देव कुछ उत्तर, यद्यपि क्रोध हा कंस उफनैस।दुनों कमइया मन हा मोला, चांटे लग गिन जीब निकालओतका बखत आत्मा कलपिस, मोर शरीर करा अस सून।धरती माता हा फटतिस ते धंसतेंव तन के सुद्धा।अइसन क्रूर समय नइ आतिस – कहां ले दुख के हुद्दा।जब बइला मन हा नइ निकलिन, तब डकहर हा करिस उपायबइला मन ला मोठ डोर मं, एकदम कंस के बंधवा लीस।गाड़ा ऊपर लाश असन रख, धन ला लेगिस डकहर क्रूरका करतिन बपुरा मूक पशु मन, बन मजबूर – बिगर मन गीन।जब ले धन मन घर ला त्यागिन, खांव खांव घर कुरिया होतअन महराज सुहावत नइये, आत्मा रोवत बिगर अवाज।”चेत लगा के सनम हा सुनिसे, कहिथय -“”कृषक के जीवन बैलयदि एमन हा हाथ ले निकलत, गिरत कृषक पर दुख के शैल।डकहर के कुछ कहां ओसला, पहिली रिहिस बहुत कंगाललेकिन बम्बई पहुंच के जोड़िस, देखे तक नइ ततका माल।
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