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<poem>
गावत हवे गरीबा हंस हंस, मारत हवय व्यंग्य के फूल
दसरुहा भाखा ला ओरखिस, जानिस तंह मुसकत दिल खोल।
एल्हत हवय गरीबा ला अब – “तोला कुछुच सरम नइ आय
सांगर मोंगर अस जवान हस, तब ले घर घर मांगत भीख!
मोर सलाह मान ले तंय हा – “गिरा पसीना महिनत जोंग
तेकर बाद पेट भर जे तंय, इज्जत साथ जिन्दगी पाल।
मोर मकान मं झन घुस तंय हा, जाव मंगे बर पर के द्वार
तुमला मंय हा नइ पहिचानंव, बइठे रहव झनिच मुंह फार।
तुमला कार बलांव मंय अंदर, तुम्मन हा अव चोर – चिहाट
यदि सांई पूंजी धर भगिहव, चले जहंव मंय बाराबाट।”
किहिस गरीबा – “ए घरखुसरा, परघउनी बर बाजा लान
बहुत दूर के सगा आंव मंय, तंय कर मोर बहुत सम्मान।
सोचत हस के घर झन आवय, पर मंय आवत टोर के बेंस
यदि तंय हा नुकसान चहत नइ, मान तुरूत तंय आज्ञा मोर।”
काबर रूकय गरीबा बाहिर, भितरा गिस दसरुके पास
दसरुओकर स्वागत करथय, खुल खुल हंसत – मनावत हर्ष।
बोलिस – “मंय मुसुवा ला कहिथंव – बासा अपन रखव घर मोर
लेकिन ओमन झूठ मानथंय, पलट घलो नइ झांकय थोर।
लेकिन आज कमाय खूब अक, सगा खवाय रखाय अनाज
चल तंय पहिली जेवन ला कर, तोला देखत अन महराज।”
तब आइस सांवत हा रोवत – “भइया, काय कहंव निज हाल
मोर बात भांवत नइ मानय, अलग होय बर ठोंकत ताल।
ओकर खटला रजवन आइस, तब ले लगे फूट के आग
सुम्मत हमर रटारट दरकिस, पोल बताय मं आवत लाज।
भांवत के सब भार सहत हंव, पर अब काबर सहंव प्रपंच!
तंय हा बांटा हमर करा दे, बने आय हस बन के पंच।”
एकर बाद हेर के रूपिया, दीस गरीबा ला तत्काल
कहिथय -”मंय रिश्वत नइ देवत, देत खाय बर मीठ पदार्थ।
पुत्र तखत फुरनाय पाय नइ, ओकर पर देखाव तुम प्यार
नाट – छांट के तंय हा कर दे, मोर नाम मं खेत कोठार।”
सांवत करत विचार अपन मन-देकर घूंस करे हंव नेक
मोर पक्ष ला लिही गरीबा, करिहय पूर्ण मोर जे टेक।
सांवत गीस प्रसन्न ओंठ धर, पाछू चल भांवत हा अैटस
ओहर पंच के तिर मं कलपत – “सांवत हवय निसाखिल क्रूर।
मंय हा ओला देव मानथंव, लछमन अस मानत आदेश
तब ले गरुगाय अस पिटथय, ऊपर ले करथय धन नाश।
ओकर खटला बेलगहिन हा, मोला लड़थय शत्रु समान
चना गहूं ला चोरा बेंचथय, हमला थोरको नइ डर्राय।
खटिया सेवत रहिथय हर छिन, चांय चांय कर लूथय बात
सूनंव नइ बारागण्डाएन, सांवत के संग रहि नइ पांव।”
दीस गरीबा ला भांवत हा, कड़कड़ रूपिया झपकुन हेर
सोचत – एला पटा डरे हंव, अब नइ होय मोर नुकसान।
कहिथय -”घर धरती ला करबे, बने छांट लाखा मं मोर
टुरी चुटुम हा फुदरत खाहय, हो कृतज्ञ जस गाहय तोर।”
दीस गरीबा हा आश्वासन – “तंय हा अपन फिकर ला टार
तोर टुरी के जीवन बनिहय, ओहर खाहय सुख के आम।
जउन सनातन मं नइ होइस, तइसन बूता करिहंव आज
तोर भविष्य बना के रहिहंव, कभू परय नइ दुख के घाम।”
मीठ बात ला करिस गरीबा, तंह भांवत के मन दलगीर
मुड़ ला उठा के लहुटत जइसे – युद्ध जीत लहुटत रणवीर।
किहिस गरीबा हा दसरुला – “तंय हा बता – करंव का काम
यदि दूनों रूपिया खावत, बट्टा लग जाहय तन मोर।
जब एमन हा धन ला छींचत, लगथय के हें पुंजलग ठोस
पुरखा जोर के धन ला छोड़िन, तभे करत नइ एमन मान?”
दसरू किहिस “ गलत सोचत हस, इंकर पास गिनती के खार
फसल अभी हे खेतखार मं, ओकर ऊपर लेत उधार।
जब कोठार मं अन्न पहुंचिहय, दन्न ले आहय साहूकार
जमों अनाज रपोट के लेगिहय, सांवत मन हो जहंय खुवार।
पर उभरवनी मान के बाजत बजनी भाई भाई।
इंकर लड़ई हा गांव बगर गिस, जस खजरी अउ लाई।
कथय गरीबा -”दुनों मुरूख मन, जानत नइ जीवन के नेत
एमन ला मंय पाठ पढ़ाहंव, ताकि रहंय झन कभू बिचेत।”
दसरुकथय -”वसूलत हस तंय, दूनों पक्ष ले कड़कड़ नोट
परिहय चोट न्याय ऊपर अउ, होबे परलोखिया बइमान।
तंय हा अपन इमान खोय हस, कइसे करबे सुघर नियाव
तोर चाल हा समझ ले बाहिर, मोला बता खोल के साफ?”
सिर्फ हंसत रहि गीस गरीबा, ओहर सांवत के घर गीस
सांवत – भांवत स्वागत करथंय, राखिन खाय मिठई नमकीन।
कथय गरीबा – “इहां आय हन, जउन काम ला धर के आज
ओहर पहिली सफल होय तंह, खानच हे फिर बांटबिराज।
अपन खेत ला चलो देखावव, उंकर करन हम पहिली जांच
तब निष्पक्ष हो सकथय बांटा, काबर निकलय ककरो कांच।”
ओतिर मनखे मन सकला गिन, जेमन सांवत भांवत आंय
चिंता – मानकुंवर अउ बांके, हवय गरीबा तक हा साथ।
जमों धान के खेत पहुंच गिन, हवय टंगरहा उनकर खेत
खोधरा डिपरा – समतल तक नइ, उहू मं बन मन लाहो लेत।
ओमन “परसा खेत’ ला देखिन, अरझे रिहिस अधिक अस धान
ओला निज हक मं लाने बर, सांवत भांवत देवत जान।
देत गरीबा डहर इशारा, अलग अलग आंखी चमकात –
“तोर खिसा ला भरे हवन हम, इहिच खेत झन होय बेहाथ”।
काबर पाछू रहय गरीबा, मुड़ ला हला के उत्तर देत
मुंह ले कुछ नइ बोलत लेकिन, हाव भाव ले समझा देत।
भर्री देख दंग रहि गिन सब, उहां गड़े नइ हल के नास
जबकि पास के दुसर कृषक मन, जोंतई काम ला करिन खलास।
सोयाबीन बोहावत आंसू, बन बंखर जमाय अधिकार
जमों पंच मन भाई मन ला, सुंट बंध के देवत दुत्कार।
मानकुंवर हा दीस ताड़ना -”कोन कथय – तुम आव किसान!
सच मं कोन किसान कहाथय, ओकर परिभाषा ला जान-
अपन देह के सुध बुध खोथय, करथय मात्र खेत के फिक्र
ओकर देखभाल करथय अउ, रखथय ध्यान सदा दिन रात।
लेकिन तोर खेत मन बेबस, बिन मालिक के जस असहाय
अइसन मं कभु अन्न होय नइ, तुम पाहव हर समय अभाव।”
गारी देत पंच मन पहुंचिन, सांवत अउ भांवत के द्वार
घर के हालत ला देखत हें, सबो पंच मन आंखी खोल।
भिड़िंग भड़ंग घर होत खंडहर, मुंह उलिया भसकत दीवार
कांड़ – कोरई मन हा गतमरहा, सहत कहां खपरा के भार!
अब का करंय पंच मन ओतिर, लहुट गीन फट अपन मकान
जेन कर्म ले हीन हो जाथय, ओहर घृणा पात हर ओर।
हेरत हवय उपाय गरीबा – इंकर साथ छूटन झन पाय
गिरत गृहस्थी सम्हल जाय अउ, जेवन बर झन मिलय अभाव।
मन मं अरथ भंजात गरीबा, पर नइ निकलत सुघ्घर राह
एक तरीका ला सोचिस पर – ओमां खतम होत उत्साह।
“जब मंय बने चेतलग रहिहंव, रहि हुसियार बढ़ाहंव गोड़
तब काबर होहय दुर्घटना, बुड़ नइ पाय जसी के नाव’
सांवत – भांवत ला फट बोलिस -”स्वादिल जिनिस खाय रंधवाव
मंय हा बइठ तुम्हर संग खाहंव, तुम्मन घलो प्रेम रख खाव।
</poem>
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