भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<poem>
“दुनों केन्द्र मं निश्चय जा तंय, उहां अपन प्रतिभा ला खोल
यदि उद्देश्य सफलता पाबे, मंय पा लुहूं हर्ष संतोष।
अगर तोर रचना अस्वीकृत, पर तंय होबे झनिच उदास
काबर के उहां होत धांधली, प्रतिभा के होवत अपमान।
जेकर पहुंच रथय ऊपर तक, जे लेखक नामी दमदार
मात्र उही मन जगह अमरथंय, उंकरे रचना पात प्रचार।”
सरकिस बहल अपन रद्दा बल, अपराधी मन छोड़िन ठौर
न्यायालय के काम खतम तंह, उहां कोन बिलमन छन एक!
ओमन बस थोरिक अस टसके, अै स गरीबा उंकर समीप
ओकर संग मं एक युवक हे, जेहर सब संग हाथ मिलात।
कहिथय – “मोर नाम हे जइतू, सेना के मंय आंव जवान
मंय हा मुढ़ीपार जावत हंव, कई दिन ले राखे हंव ठान।
भारत ला तुम्मन जानत हव, ओहर मोला बहुत बलैस
लेकिन जलगस भारत जीवित, मोला बखत मिलन नइ पैस।
भारत ला मंय भांटो मानों, तब अमरउती बहिनी आय
ओकर साथ भेंट मंय करिहंव, इही विचार पकड़ के आय।”
किहिस गरीबा हा मेहरुला – “हमर साथ मं तंय चल मित्र
अगर एक कवि साथ मं होथय, मिलत सुने बर कथा विचित्र।”
मेहरुस्वीकारिस -”सच बोलत – बहुत बिचित्र जगत के हाल
देश भक्त जनहितू एक तन, पर कोती घालुक चण्डाल।
भारत अपन देश के खातिर, अपन प्राण कर दिस बलिदान
पर छेरकू – धनवा जइसन मन, करत अपन जन के नुकसान।”
मेहरु- जइतू अउर गरीबा, मुढ़ीपार के धर लिन राह
भारत के घर मं पहुंचिन अऊ, लेवत हें अंदर के थाह।
अमरउती हा दुखी दिखत हे, हाथ चुरी ना मुड़ सिन्दूर
नाक फुली ना माथ न टिकली, धोवा लुगा उहू कुरकूर।
भारत के सुरता हा आवत दृष्य दिखत हे नाना।
अमरउती मन सम्बोधन बर गावत विरह के गाना।
पहिली गवन के मोला डेहरी बइठारे,
नारे सुअना बइठेहवंव मन बांध
तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर,
ना रे सुअना दुख पाथय अंधनिरंध
भारत साथ पाएंव सुख थोरिक,
चल दिस देश बचाय
ओकर बिना एदे रात हा मोला,
सउत असन सताय।
जावत जावत किहिस भारत हा,
रखबे ए बात के चेत –
तुलसी के बिरवा तोर मुरझुर मुरझुर,
तोर पिया रन खेत।
तुलसी मं पानी छिड़क के मंय देखेंव,
रात बिरात के जाग
डारा बड़े झुमरय तंह जानंव,
भारत हा हरसात।
छोटे ला बड़का छुए तंह जानंव,
झींकत मोर बंहा
छोटे हटय तेला मानों मंय
बोलत – धर लेग जाहव कहां!
जहां दुनों मिल हालंय अउ होलंय,
हम जोड़ी हन एक
तीसर डार हलय बस थोरिक,
पर मनसे लिस देख।
हवा चलय कहुं झरपट आवय,
भारत क्रोध देखात
छोटे हा जावय बड़े तिर मं तंह,
मंय हा मनात पथात।
इसने कटत दुख के छन चुप चुप,
मन ला रखंव मन बांध
बस दू – चार दिवस नहकय तंह,
भारत पत्र भिजाय।
एक दिन देखेंव तुलसी ला हालत,
हो गेहे चालू लड़ई
उही बड़े डारा ऊपर बाढ़िस,
भारत कर दिस चढ़ई।
नींद न आवय – बिना छिन सोए,
काट डरेंव मंय रात
तुलसी के बिरवा संग मंय एके झन,
कलप कलप करेंव बात।
एक ठक पत्ता गिरिस तंह मानेव – बस एक दुश्मन कटिस
बर बर गीरिन जहां पत्ता मन,
शत्रु के लाश पटिस।
एक ठक फुलगी बढ़िस तंह मानेंव,
जीतिस के चौकी एक
कई ठक फुलगी नवा नवा देखेंव,
पाए हें चौकी अनेक।
मुंह झुलझुल ले उठ मंय नहाएंव,
बारेंव उदबत्ती दीप
तुलसी एहवातिन के पांव परेंव मंय,
मानेंव अड़बड़ सुख।
उही दिवस उपवास ला रहि के,
काटेंव हंसमुख दिन
नजरे नजर मं भारत हा झूलय,
आइस यादे हर छिन।
एक दिन देखेंव बहुत डारा मिल के,
बड़का पर झुम गीन
जान डरेंव भारत हा फंसगिस,
भाग नइ जतकत।
छिन रुक तुलसी के बिरवा हरियाइस,
होगिस शत्रु के नाश
टिकली अउ चूरी सिन्दूर अमर हे,
बंधगे हृदय विश्वास।
ओतके मं देखेंव ए दृष्य ला आगू
नारे सुअना
हो गेंव मंय हा बिचेत
तुलसी के बिरवा मोर मुरझुर – मुरझुर
नारे सुअना
जान डरेंव पति खेत।
नारे सुअना
मोर पती रन खेत ………।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits