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अमरउती हा बंद करिस जब खुद के बिपत कहानी।मेहरु- जइतू अउर गरीबा पहुंचिन तीनों प्राणी।अमरउती इनकर बइठेबर, सरकी लानिस तेन तुनायबहुत अधीनी ले दिन काटत, काकर तिर जा बिपत सुनाय!अमरउती के पति भारत हा, अपन देश बर जीवन दीसमगर देशवासी मन स्वार्थी, छूटत कहां फर्ज के कर्ज!“छत्तीसगढ़ी सरल मिट्टी अस, जउन करिस हे क्षेत्र विकासपर छत्तीसगढ़िया मन हा भिड़, करत हइन्ता बीच बजार।छत्तीसगढ़ी दीन कंगलिन अस, ओकर सदा होत हिनमान“भाषा आय’ अगर बोलत, मुंह ला दबा – दबात अवाज।’जेन मिलत अमरउती जेवत, सरफा परत बचे बर जीवबसत गरीबी गाड़ के खमिहा, निर्बल के सुर्हरावत जीब।तीनों झन सरकी पर बइठिन, मन मं नइ लाइन कुछ भेवचिखला मं सनाय रहिथय पर, छिनमिन कहां करत हे नेव!जइतू किहिस – “तोर भाई हम, अब ले तंय झन कर कुछ फिक्रजउन बेवस्ता आय तोर पर, हमर पास कर बेझिझक जिक्र।भारत रिहिस राष्ट्र के प्रेमी, ओकर अस नइ भारत धामयद्यपि भारत हा जग मं नइ, तभो अमर हे ओकर नाम।ओला नता मं भांटो मानों, हमर दुनों मं चलय मजाकओला हार जाय कहि सोचंव, मगर ऊंच तन ओकर नाक।मंय बीमार परेंव बेधड़क, भारत जतन करिस दुख झेलमोला खूब प्रसन्न रहय कहि, हंसा डरय बिजरा के एल।मंय घबरा के अइसे बोलंव – अब नइ बांचय जीवन मोरतंय हा मोला छोड़ के भग झन, जलगस नइ पहुंचत समसान।”भारत हा मुसकावत बोलय -”अभी प्रसन्न कहां यमराजसाले, तोला कोन मारिहय, बचे हवय अभि देश के काम।अगर कहूं तन जाय के होहय, तब हे मोर प्रथम अधिकारसत्य बचन ला जांच देखबे – होवत विजय मोर के तोर?”वास्तव मं भारत हा जीतिस, अउ मंय हार गेंव हर शर्तओकर स्मृति सदा सतावत, चुहे धरत आंसू के धार।”सबके आंसू छलक बोहावत, आंसू रोक सकिस नइ आंखनदिया मं बंधाय बांधा हा, बढ़त पुरा नइ पावय रोक।अमरउती हा आंख पोंछतिस, तंहने लुगा चिरा गिस फर्रदुब्बर ला परेशान करे बर, दू असाढ़ आ जाथय सर्र।मेहरुलुगा लाय बर उठथय, अमरउती हा छेंकिस बीच –“भारत हा मोला शिक्षा दिस – कभु झन लेबे पर के चीज।जलगस मंय हा जीवित जग मं, पूरा करिहंव तोर सवांगअगर युद्ध मं मंय हा चंदन, तब झन तजबे आस कड़ांग।अपन जिन्दगी अवस पालबे, महिनत कर – दुख संग कर होड़देसू हा जब बाढ़ जहय तंह, पटक दिही सब सुख ला गोड़।”देसू नाम सुनिन तीनों झन, जकर बकर देखत सब कोतजइसे नाविक बीच सिन्धु मं, खोजत रथय कहां के पोत!जइतू अचरत मं भर पूछिस – “कते डहर हे देसू।भांचा ला हम चहत देखना – जस फागुन हा टेसू।अमरउती हा शर्म मं गड़गे, देखे लगिस स्वयं के पांवएमन बिगर बताय समझ गिन, हमर बहिन हे भारी पांव।“यदपि जिये के अब लालच नइ, पर ए कारन घसलत – हायदेश डहर जे नाम हा जुड़थय, जीयत ओकर फूल बचाय। ”मेहरुओला ढाढस बांधिस – “मरना नइ संहराय के कामकर संघर्ष जउन ही जीयत, ओकर जगमग होवत नाम।लक्ष्मीबाई जिनगी खोतिस, पति चिंता मं चिता मं कूदगोर मन संग कोन हा लड़तिस, अजर अमर नइ रहितिस नाम।”कथय गरीबा, अमरउती ला – “तंय हा हमर मदद नइ लेततोर पास हे धन के कमती, तब तंय कइसे भरबे पेट?”अमरउती बोलिस – “मंय पाहंव, शासन ले अड़बड़ अक नोटजीवन अपन चलाहंव सुदृढ़, देसू बर रख लुहूं रपोट।”मेहरुकिहिस – “वाह रे शासन, तंय देथस आश्वासन मात्रमरन देस ना देस मोटावन, जीवित के करथस दशगात्र।”कथय गरीबा हा जइतू ला – “तंय हा बता एक ठन भेदजे सैनिक शहीद हो जाथय, ओकर रथय वंश परिवार।ओकर मदद करत शासन हा, ताकि अभाव कष्ट हो दूरअमरउती कब सुविधा पाहय, पेंशन भूमि नगद मं नोट?”जइतू कथय -”साफ फोरत हंव – शासन मंगत अचूक प्रमाणयदि सैनिक के मृत्यु होय हे, मिलना चहिये ओकर लाश।पर भारत के जटिल हे प्रकरण, हम जानत हन वाजिब गोठभारत हा दुश्मन ला मारिस, ओकर संग खुद होय शहीद।पर भारत के लाश मिलिस नइ, तब शासन दुविधा के बीचभारत ला “फरार’ मानत अउ, मदद करे बर हे असमर्थ।अमरउती ला मदद मिलय नइ, ना भुंइया ना धन के लाभहम ओला ढाढस हे सकथन, एकर सिवा शक्ति नइ और।”अमरउती ला दिन सम्बोधन, तीनों झन अब गोड़ हटात“भाई मन बिन खाय लहुट गिन’ इही सोच बहिनी पछतात।तीनों झन पाछू नइ देखिन, रेंगिन चुप – पटके बिन पांवपर जब जानिन – दिदी हिम्मती, गरब साथ देखिन कई घांव।एमन आगू कोती रेंगिन, जहां पुसऊ के घर तिर गीनटीकम चम्पी देवलू बोंगडू, खिघू आदि के लगे हे भीड़।पुसऊ हा रोवत मुड़ ला पटकत, अपन प्राण तक के सुध खोयदेवलू पूछिस -”काबर कलपत, आय तोर पर का तकलीफ?”मन सम्बोधिस तहां पुसऊ हा, खोले बर लग जथय बिखेद –“जान लेंव मंय कतका होथय, पुंजलग अउ कंगला मं भेद!मंय हा करों घमंड उठा मुड़ – असरुहवय अचक धनवानओला मंय समधी बनाय हंव, यने उठेहंव मंय खुद ऊंच।पर अब वाजिब पता चलिस हे – अपन बेवस्ता फोरत साफ –मोर दुलौरिन अस धरमिन हा, नइ जीयत हे ए संसार।हत्यारा फंकट अउ असरु, मोर टुरी के जीवन लीनदाइज के दानव आखिर मं, धरमिन ला खुद के चइ लीस।”मनसे मन कारण जानिस तंह, कोइला अस मुंह करिया गीसजइसे घटके गंहुवारी ला, कुहकुह पाला हा झड़कैस।टीकम टांचिस तुरुत पुसऊ ला -”अचरज होत बात सुन तोरतंय पतियाय के लाइक गोठिया, हमला काबर करत अवाक!धरमिन आय तोर सग पुत्री, तब ले मांगत ओकर मौतलगथय -”तंय पगला होगे हस, काम करत नइ तोर दिमाग?”पुसऊ किहिस -”मंय हा नइ पगला, जउन बताय जमों सच आययदि विश्वास मोर ऊपर नइ, पता करव जा छुईखदान।असली मं मंय समझ पाय नइ, धरमबती के भाषा व्यंग्यमंय भुलाय रेहेंव गुमान मं – समधी पाय धनी अड़जंग।मोर मया हा जहां बीत गिस, पहुंच गेंव खट छुईखदानअसरुके व्यवहार देख के, मोर प्रान हा सुखगे ठाड़।मोर बिगर ओंमन हा दे दिन, मोर मया धरमिन ला दागमुख दरसन तक मिल नइ पाइस, तब लगगे तन बदन मं आग।
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