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कार जीप पर बइठ के चल दिन छेरकू अउ अधिकारी।मगर घना के तिर नइ वाहन खड़े हे चुप झखमारी।डेंवा, घना ला चिथिया पूछत -”होत शुरुकब बांध के काममंय जिज्ञासु सुने चाहत हंव, यदि जानत तब बता तड़ाक?”घना सुकुड़दुम हो के बोलिस -”अधिकारी फोरिस नइ साफचल ओकर तिर पहुंच के पूछन, बांध हा बन – कब तक तइयार?”द्वितीय वर्ग के अधिकारी तक, बउरत हें शासन के जीपमगर विधायक मन बिन वाहन, देखव तो शासन के नीत!हम्मन जनप्रतिनिधि कहवाथन, जन जन तिर पहुंचे के कामलेकिन हम सुविधा बर तरसत, कहां पूर्ण जनता के काम!मोला क्षेत्र किंजरना होथय, मंय हा लेत किराया के जीपखुद हा देत खर्च के रुपिया, शासन वहन करय नइ भार।”डेंवा लाय फटफटी अड़जंग, ओमां दुनों बइठ गिन जल्दकार्यालय तन धड़धड़ जावत, बीच राह उरकिस पेट्रोल।गीन “पेट्रोल पम्प’ एक संघरा, फटफटी मं पेट्रोल भरैनअब गिनना हे नगदी रुपिया, देखव कोन गिनत हे नोट!डेंवा सोचत – बांध हा बनिहय, जमों कृषक के सिंचिहय, खेततब मंय काबर खर्च उठावंव, पर के भार कार मुड़ लेंव!घना आय जनता के मुखिया, सबके उहिच हा ठेकादारआय खर्च ला भरय उही भर, जनता करिहय जय जयकार।डेंवा डहर घना हा देखिस, पर डेंवा देखत पर ओरघना समझगे सब रहस्य ला, डेंवा हटत भरे बर नोट।सोचत घना- अगर मंय टरकत, मंय हो जंहव व्यर्थ बदनाम –जनता के धारन कहवावत, पर ओकर हित कर नइ पात।घना निकालिस जेब ले रुपिया, पटा दीस पेट्रोल के दामदुनों पुन& कार्यालय जावत, आखिर पहुंच गीन गंतव्य।बहुत लिपिक ज।सं।वि। कार्यालय, उंकर टिप्पणी बर असमर्थकई झन चाय पान बर खिसके, कइ झन मन मारत गप हांस।बाहिर बेंच रखाय एक ठन, तातू भृत्य लेत हे नींदलिपिक मंगत हें पानी फाइल, मुश्किल मं मानत आदेश।घना विधायक ला बग देखिस, सब आलस्य भगागे दूरसावधान होथय हड़बड़ कर, मानों सब ले करतबवान।जमों लिपिक ला इतला देवत – आत विधायक हा इहि ओरअपन काम हुसियार होव सब, मिलय प्रशंसा पत्र इनाम।”लिपिक जे किंजरत एतन ओतन, कुर्सी बइठ जथंय चुप शांतकुर्सी बइठ जउन गप छांटत, फाइल पर गाड़त हे आंख।लिपिक चैन हा घना ला एल्हत – “कोन विधायक ला डर्रातएहर काय बिगाड़ सकत हे, चार दिवस बर पद ला पाय।”बालम किहिस – “सत्य बोलत हस, एकर तिर नइ कुछ अधिकारना कर सकत नियुक्ति निलम्बित, पथरा के देवता भर आय।”ज्ञानिक हा समभाव से बोलिस – “ककरो कार करत हिनमानओहर तुम्हर बिगाड़ करत नइ, देवव मान समझ इंसान।”कार्यालय मं निंगत घना अब, अधिकारी के कमरा गीसलेकिन बाबूलाल नदारत, ओकर मुंह दरसन नइ दीस।घना उहें के लिपिक ला पूछिस, कहिथय चैन बला टर जाय –“साहब पास काम थर के थर, ओकर विस्तृत कर्म के क्षेत्र।कल भोपाल ले वापिस आइस, मात्र रात भर लीस अरामआज मुंदरहा निकलगे दौरा, कब वापिस सच कोन बताय!”घना जान लिस असच बतावत, धोखा देवत मोला।अैास चैन पर क्रोध मगर, नइ मारिस क्रोध के गोला।दूसर प्रश्न घना ला पूछिस -“बांध बनाय एक आदेशओहर इहां कोन दिन आइस, कब प्रारंभ होत हे काम?”बालम कहिथय -“हम नौकर अन, होय नियुक्ति सुनन आदेशयदि आदेश आय कार्यालय, पालन बर हम हन तैयार।बांध काम ला कोन छेंकिहय, कोन लिही आफत ला मोलराष्ट्र विकास मदद सब देवत, कोन सकत आदेश उदेल!”बालम दीस जुवाप अर्थ बिन, सुन के करथय ज्ञानिक रोषपर काबर ककरो संग उलझय, स्वयं कहत रख स्थिर बुद्धि –“तोला मंय सच भेद बतावत- कहां के बांध कहां के आदेशकाकरा करा – कोन दिन आइस, हमला सुनगुन तक नइ ज्ञान।यदि अधिकारी ला पूछत हव, पहुंच जाव फट उंकर निवासअगर भेंट होवय ओकर संग, पता लगाव भेद ला पूछ।”ज्ञानिक जउन राह फुरियाइस, घना ला जंच – आथय विश्वासडेंवा साथ उहां ले निकलिस, पर ए बात कान मं आत।चैन हा एल्हत हे ज्ञानिक ला – “सब कार्यालय बोलत झूठमगर एक सतवंता तंय भर, राह चलत हस पर ले नेक।कार्यालय ला तंय चलात हस, रख ईमान मान आदेशसब के भार तोर मुड़ आथय, तोर बिगर कार्यालय सून।”चलत घना अधिकारी तिर मं, आखिर पहुंचिस उंकर निवासअचरज मं अंगरी ला चाबत, बाबूलाल के बंगला देख।बोलिस घना -"बड़े भुंइया मं, मोहक बंगला बने हे बीचचारों तन हे बाग बगीचा, जेमां हवय फसल फल फूल।रख रखाव मं खर्च आत कंस, ओला सहत हवय सरकारमगर फसल फल फूल ला खावत, साहब अउ ओकर परिवार।शासन के वेतन ला पावत, तेन भृत्य मन इंहे कमातएक अधिकारी के सेवा बर, पाछू दउड़त कई इंसान।”डेंवा रखथय प्रश्न घना तिर – “कई सुविधा साहब मन पायतंय हा शासन के पटिया अस, कतका सुख सुविधा तंय पाय?”केंघरिस घना -"अपन का रोवंव – मंय हा रहिथंव अपन मकानदूरभाष के खर्च पटाथंव, स्वागत खर्च करत मंय पूर्ति।
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