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मेहरूबुतकू तिर ले निकलिन, पर धनवा हा नइ दिस ध्यानकाबर के ओहर मनगभरी, सोच सिन्धु मं डुबकी लेत –“मंय जेला दपका के राखंव, धनवा नाम सुनत डर्रायपर अब उल्टा धार बोहावत, उंकरो मान जतिक हे मोर।मोर टुरा तक हे असुरक्षित, ओकर भावी हे अंधियारतब दूसर मनखे के वंशज, काबर पावय सुख आनंद!दुश्मन के निसनाबुत करिहंव, आगी ढिल के करिहंव राखसुम्मतराज के लक्ष्य हा बरही, ओकर संग मं दुश्मन जेन।”जब मनबोध के नींद हा परगे, पलंग सुता दिस चुम पुचकारतंहने ओ कमरा मं जाथय – जिहां रखे घातक पेट्रोल।धनवा हा पेट्रोल ला बोलिस -”तंय हा थोरिक धीरज राखतोर मदद मंय खत्तम लेहंव, होही पूरा मन के काम।तोला सबके घर मं छिचिहंव, माचिस बार के ढिलिहंव आगगांव के अन धन अउ दुश्मन मन, तोर कृपा ले जर के राख।अधरतिया के बेरा आहय, मनसे देखत सपना मीठऊंकर जीवन ला बारे बर, मंय हा करिहंव तोर प्रयोग।”फगनी शौचकर्म ले लहुटिस, धनसहाय ला भोजन दीसअपन घलो जेवन ला करथय, एकर बाद दुनों सुत गीन।धनवा हा फगनी ला कहिथय -”लउठी बम विध्वंशक चीजजहर अस्त्र फांसी के फंदा, यद्यपि एमन हें निर्जीव।पर मंय इनकर आंव प्रशंसक, एमन करत गजब उपकारमनखे हा सजीव ताकतवार, मगर इंकर नइ पावत पार।”फगनी हा अचरज मं कहिथय -”जेन जिनिस के नाम गिनायओमा नाश करे के ताकत, एमन मनसे के रिपु आंय।लेकिन तंय हा करत प्रशंसा, तोर बुद्धि हा आज खराबमोर पास तंय सत्तम फुरिया, तोर हृदय मं काय विचार?”धनसहाय हा हंस के रहिगे, उत्तर ला मन मं रख लीसखुद हा सोय के ढचरा मारत, फगनी हा सच मं सुतगीस।थोरिक रात निकल जाथय तंह, फगनी मरथय कंस के प्यासओहर पलंग ले उठके जावत, आधा नींद जगत हे आध।धधमिंध उदुप उही कमरा गिस, जिंहा मड़े घातक पेट्रोलघुप अंधियार हवय ते कारन, दिख नइ पावत हे कुछ चीज।आखिर मं माचिस ला बारिस, तब होगे दुर्घटना एक-बस पेट्रोल के तिर मं पहुंचिस, पकड़िस आग भभक्का मार।“हाय दई अब जीव हा जाहय, यहदे धरिस भर्र ले आग’फगनी चिल्ला बोम मचावत, संख असन उड़ियागे चेत।ओतन धनवा हा जागत हे, अटपट घोखत दसना लेट-“बइरी मन सूरज नइ देखंय, ओकर पहिली मटियामेट।”धनवा हा गोहार ला सुनथय, दउड़त गिस फगनी के पासजहां उहां के हालत जांचिस, ओकर होगे सुन्न दिमाग।धनवा हा फगनी ला पकड़िस, घर के बाहिर झप आ गीनबोरोर बोरोर दुन्नों चिल्लावत, ताकि खबर फइलय सब ओर।सुन ग्रामीण झकनका उठगें, परगे भंग परत जे नींदछोड़ सुतई पागी ला सकलिन, धनवा के घर तिर मं अै न।संइमो संइमो मनसे होवत, पेड़ ऊपर ऊगत कइ पेड़एमन इहां खबर ला पूछत, ओतन बढ़त अगिन के रुप।पूछिन -”तुम काबर नरियावत, तुम पर आय कते तकलीफका दुर्घटना हा अभि घटगे, सुनन हमूं हा ठोंक बिखेद?”धनसहाय हा दीस इशारा – देखव तो घर कोती।आगी हा धक धक बाढ़त हे नभ ला छूवत जोती।दुखिया बती घलो आये हे, फगनी तिर मं रखिस सवाल-“मंय हा सब झन ला देखत हव, पर अनुपस्थित हे बस एक।तोर पुत्र मनबोध कहां हे, ओहर अभि नइ असलग तोरओला लान मोर तिर झपकुन, मंय हा देहंव मया सनेह।”एला जब फगनी हा सुनथय, होगिस तुरुत सुकुड़दुम सांयबेटा ला भूले हे अब तक, तेकर खब ले आइस याद।हे मनबोध घरे के अंदर, ओकर हालत जानत कोन!ओहर अब तक बचे सुरक्षित, या ओकर पर दुख के गाज!“हमर चाल मं कीरा परगे, घर मं छूटे हे प्रिय पुत्रलकर धकर हम बाहिर आये, पर मनबोध के नइये ध्यान।”बही असन फगनी हा बोलिस, दउड़त जावत अंदर ओरधनवा घलो हाल जानिस तंह, पगला अस रोवत चिल्लात-“मोर पुत्र हा सुख ला भोगय, ओकर भावी हो आनंदस्वार्थ पूर्ति बर करेंव लड़ाई, जग ला बना डरे हंव शत्रु।उही पुत्र ला मंय भूले हंव, ओहर जूझत आग के बीचमुंह देखाय के लाइक मंय नइ, ठंउका मंय अंव निष्ठुर क्रूर।”धनवा हा अंदर पहुंचे बर, शक्ति लगावत उदिम जमातमगर भीड़ हा पति पत्नी ला, अपन पास राखत हे रोक।मनखे मन ला कथय गरीबा -”धनवा के अभि व्यग्र दिमागअइसन मं यदि काम ला धरिहय, मिलिहय असफलता परिणाम।सावधान रहि मंय घुसरत हंव, रखहू तभो मोर तुम ध्यानमंय मनबोध ला लात सुरक्षित, एमां भले बिपत मंय पांव।”दीस गरीबा पहिली इतला, जाय चहत हे भितर मकानआगी ले भिड़ टक्कर लेतिस, तभे सनम आगुच मं अैकस।हाथ ला छितरा रद्दा रोकत -”तंय जानत हस जमों बिखेदमोर बाप के नाम फकीरा, सोनू हा धनवा के बाप।धनसहाय के बाप हा लूटिस, मोर ददा ला सिधवा जानदूसर वंश आय धनवा हा, शोषण करिस हमर श्रम बुद्धि।तंय मनबोध के रक्षा चाहत, ओहर धनवा के औलादओहर भावी वंश ला लुटिहय, पुत्र गली पर अत्याचार।
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