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सही परख हीरे की जैसे एक जौहरी करता
शंख-सीप के बीच से जैसे कोई मोती चुनता
करीगर कारीगर ईंटो से जैसे महल खड़ा कर देता
छोटे- छोटे अणु को छूकर बहुत बड़ा कर देता।
भाषा के विस्तार के लिए ऊँचा मंच बनाया।
मनबहादुर मानबहादुर की कविता, उन्मत्त की अवधी बानी
प्रथम बार जो पढ़े गये वो कवि रफ़ीक़ सादानी
‘युगतेवर’ ने ताबिश पर, मजरूह पे अंक निकाला
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