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{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कुमार निगम
|संग्रह=
}}
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<Poem>
रुखराई ला काट काट
नदिया नरवा पाट पाट
नँगत बनाये नगर हाट
करत हवस का रे लुवाट।
सहर लील गिन हमर खेत
लाँघन किसान लइका समेत
सपना मन बन गिन परेत
समय रहत ले अरे चेत।
चेताइस केदार नाथ
भुइयाँ के झन छोड़ साथ
नइ तो हो जाबे अनाथ
कुछू नहीं हे तोर हाथ।
जेला कहिथस तँय विकास
वो तो भाई हे बिनास
समझावय धरती अगास
भुइयाँ ला झन कर हतास।
हरियर कर दे खेत-खार
जंगल के कर दे सिंगार
रोवय झन नदिया पहार
पीढ़ी-पीढ़ी ला उबार।
</poem>
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|रचनाकार=अरुण कुमार निगम
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}}
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<Poem>
रुखराई ला काट काट
नदिया नरवा पाट पाट
नँगत बनाये नगर हाट
करत हवस का रे लुवाट।
सहर लील गिन हमर खेत
लाँघन किसान लइका समेत
सपना मन बन गिन परेत
समय रहत ले अरे चेत।
चेताइस केदार नाथ
भुइयाँ के झन छोड़ साथ
नइ तो हो जाबे अनाथ
कुछू नहीं हे तोर हाथ।
जेला कहिथस तँय विकास
वो तो भाई हे बिनास
समझावय धरती अगास
भुइयाँ ला झन कर हतास।
हरियर कर दे खेत-खार
जंगल के कर दे सिंगार
रोवय झन नदिया पहार
पीढ़ी-पीढ़ी ला उबार।
</poem>