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औरत / कैफ़ी आज़मी

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उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
क़ल्ब-ए-माहौल <ref>मर्मस्थल, ह्रदय</ref> में लर्ज़ां <ref>कंपित</ref> शरर-ए-जंग <ref>युद्ध की चिंगारियाँ</ref> हैं आज हौसले वक़्त के और ज़ीस्त <ref>जीवन</ref> के यक-रंग हैं आज आबगीनों <ref>शराब की बोतल</ref> में तपाँ <ref>धड़कन</ref> वलवला-ए-संग <ref>पत्थर की उमंग</ref> हैं आज हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ <ref>एक स्वर</ref> ओ हम-आहंग आहंगल<ref>एक लय रखनेवाले</ref> हैं आज
जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन <ref>सभ्यता, शहरों का बाग</ref> की बहार तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार <ref>धुरी</ref> तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार <ref>आकांक्षा का पालना</ref> ता-बा-कै <ref>कहाँ तक, कब तक, ताकि</ref> गिर्द तिरे वहम ओ तअय्युन <ref>निश्चय करना, आस्तित्व</ref> का हिसार <ref>नगर का परकोटा, क़िला</ref> कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत <ref>तन्हाई की महफ़िल</ref> से निकलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बन के सीमाब <ref>पारा</ref> हर इक ज़र्फ़ <ref>पात्र</ref> में ढल जाती है ज़ीस्त <ref>जीवन</ref> के आहनी <ref>लोहा</ref> साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे</poem>
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