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Kavita Kosh से
वे फाँक-भर खुलते हैं घंटी की आवाज़ पर
हो जाते हैं बन्द खुद-ब-खुद
बहुत कम हँसते हैं खूबसूरत घर
ठहाके लगाने वाले लोग होते हैं जंगली
छोटी-छोटी खुशियों का मनाते हैं उत्सव
खूबसरत घरों में नहीं रहते-