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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रति सक्सेना
}}
परछाइयों के बीज़
कुछ इस तरह बिख़र गए
पिछवाड़े
कि खड़े हो गए रातो-रात
अंधेरों के दरख़्त
फूल खिले फिर फल
टपक पड़े बीज़ फट
दरख़्तों से उगे पहाड़
पहाड़ों से परछाइयाँ
पौ फटनी थी कि
छा गया अंधेरा पूरी तरह।
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|रचनाकार=रति सक्सेना
}}
परछाइयों के बीज़
कुछ इस तरह बिख़र गए
पिछवाड़े
कि खड़े हो गए रातो-रात
अंधेरों के दरख़्त
फूल खिले फिर फल
टपक पड़े बीज़ फट
दरख़्तों से उगे पहाड़
पहाड़ों से परछाइयाँ
पौ फटनी थी कि
छा गया अंधेरा पूरी तरह।
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