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हत्यारे / कर्मानंद आर्य

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ललाट पर टीका मुंह में पान हाथ में कलावा क्या लगता है तुमको इक्कीसवीं सदी की जनता इतनी मूर्ख है कि तुम्हारे बरगलाने से हो जायेगी कुंयें का मेंढकटपके हुए लार में कूदकर दे देगी जान हो जायेगी चुप समय बदल रहा है इक्कीसवीं सदी के बच्चे जब बाइसवीं सदी में बात करेंगे वे अपने बच्चों को बताएँगे यह देश मदारियों का देश था यह देश भिखारियों का देश था इस देश में अन्नों के कोठार भरे हुए थे इस देश में सुख और समृद्धी थीव्यवसाय था वे जरुर बताएँगे, यह सब वे बतायेंगे कि कुछ लोग सिर्फ इसलिए नही पढ़ पाए कि उनके मुँह में नहीं था पान माथे पर टीकाहाथ में कलावा वे नहीं बढ़ पाए आगेक्योंकि उनके पैरों पर कील ठोंक दी गई उनके कानों में डाल दिया गया गरम पानीउन्हें धीमा जहर दिया गया वे बताएँगे उन लोगों की कथा जो बिना हथियारों के हत्यारे थे और देश को दीमक की तरह चाट रहे थे
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