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ग्वाला बैजू के रो गैया, तोड़ी-तोड़ी रस्सी रोजे
आबी-आबी दूध केॅ चढ़ाबै वैद्यनाथ केॅ l
देखी-देखी बैजू के मनोॅ मेॅ चिढ चिढ़ हुए खुब्बे
लाठी-लाठी रोजे वों डंगाबै वैद्यनाथ केॅ l
एक दिना खाना छोड़ी उठी झट बैजू गेलै
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