भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हम गए तो वां पर उनका दर नहीं हम पर खुला
यूं यूँ समझिए इस बहाने आना-जाना हो गयाI
जी को लगता था कि रोना तो बड़ा आसान है
रोए तो आंखों आँखों के रस्ते खूं खूँ बहाना हो गयाI
हम अभी ज़िंदा ज़िन्दा हैं मरने की कोई सूरत नहींक्यूं क्यूँ लगा दुनिया में अपना आबो-दाना हो गयाI
हम कहें और वो न माने फिर कहें फिर-फिर कहें
ये तो अपने हाल पर जग को हंसाना हँसाना हो गयाI
एक तरफ़ दस्ते-सितम है एक तरफ़ दीवानगी
दिल हमारा चांदमारी चाँदमारी का निशाना हो गयाI
एक हद के बाद रोने का कोई मतलब नहीं
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits