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|रचनाकार=कुमार सौरभ
|संग्रह=
}}
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यह परीक्षाओं का
ऊब और धूल भरा
मौसम हुआ करता था !
उदास सुबह
थकी दोपहरी
घबरायी शाम
चिंतातुर रातें
यही सब परिचित हुआ करते थे
इस मौसम के !
इसकी हवाएँ
काव्यरूढ़ि भर थीं
बिना छुए
गुज़र जाया करती थी!
तुम्हारी ही आमद है
कि अब यह फागुन है !!
</poem>
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|रचनाकार=कुमार सौरभ
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यह परीक्षाओं का
ऊब और धूल भरा
मौसम हुआ करता था !
उदास सुबह
थकी दोपहरी
घबरायी शाम
चिंतातुर रातें
यही सब परिचित हुआ करते थे
इस मौसम के !
इसकी हवाएँ
काव्यरूढ़ि भर थीं
बिना छुए
गुज़र जाया करती थी!
तुम्हारी ही आमद है
कि अब यह फागुन है !!
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