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|रचनाकार=रविकांत अनमोल
|संग्रह=
}}
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<poem>
वो चाहे तो दीवाना भी दानिशवर सी बात करे
उसकी रहमत हो तो फ़कीरी शाहों को ख़ैरात करे
ताकतवर की ताकत भी तो उसकी मर्ज़ी से ही है
वो चाहे तो कमज़ोरी भी हर ताकत को मात करे
उसकी दुनिया उसके बंदे जो चाहे करवाए है
वो जब चाहे जैसे चाहे दुनिया के हालात करे
सूरज उसका चंदा उसका उसके ही ये तारे हैं
जब चाहे दिन कर दे रौशन वो जब चाहे रात करे
किस को कौन सा काम वो दे दे उसकी मौज वो मालिक है
किसको तख़्तो ताज वो बख़्शे किस को अता ख़िदमात करे
शायर के नाज़ुक दिल को भी पत्थर कर सकता है वो
वो ‘अनमोल’ अगर चाहे, पत्थर को अता जज़्बात करे
</poem>
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वो चाहे तो दीवाना भी दानिशवर सी बात करे
उसकी रहमत हो तो फ़कीरी शाहों को ख़ैरात करे
ताकतवर की ताकत भी तो उसकी मर्ज़ी से ही है
वो चाहे तो कमज़ोरी भी हर ताकत को मात करे
उसकी दुनिया उसके बंदे जो चाहे करवाए है
वो जब चाहे जैसे चाहे दुनिया के हालात करे
सूरज उसका चंदा उसका उसके ही ये तारे हैं
जब चाहे दिन कर दे रौशन वो जब चाहे रात करे
किस को कौन सा काम वो दे दे उसकी मौज वो मालिक है
किसको तख़्तो ताज वो बख़्शे किस को अता ख़िदमात करे
शायर के नाज़ुक दिल को भी पत्थर कर सकता है वो
वो ‘अनमोल’ अगर चाहे, पत्थर को अता जज़्बात करे
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