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दोहे / घाघ

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<poem>
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।तूर॥1॥
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।जाए॥2॥
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।होय॥3॥
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।अघाहि॥4॥
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।कोय॥5॥
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।कोय॥6॥ तीतरवर्णी बादली विधवा काजल रेख।वा बरसे वा घर करे इमे मीन न मेख॥7॥ उत्तर चमके बीजली पूरब बहे जु बाव।घाघ कहे सुण भड्डरी बरधा भीतर लाव॥8॥ सावन केरे प्रथम दिन, उगत न दीखै भान।चार महीना बरसै पानी, याको है रमान॥9॥ चैत्र मास दशमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।चौमासे भर बादला, भली भॉंति बरसाई॥10॥ नवै असाढ़े बादले, जो गरजे घनघोर।कहै भड्डरी ज्योतिसी, काले पड़े चहुँ ओर॥11॥ सावन पुरवाई चलै, भादौ में पछियॉंव।कन्त डगरवा बेच के, लरिका जाइ जियाव॥12॥</poem>
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