भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उर्दू है मिरी जान अभी सीख रहा हूँतहज़ीब की पहचान अभी सीख रहा हूँ हसरत है कि गेसू-ए-ग़ज़ल मैं भी संवारूँ ये बह्र, ये अर्कान, अरकान अभी सीख रहा हूँ होने की फ़रिश्ता फरिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़ बनना ही मैं इंसान, अभी सीख रहा हूँ ख़ादिम हूँ ज़माने से इसी सिनफ़े ग़ज़ल का पढ़-पढ़ के मैं दीवान, अभी सीख रहा हूँ महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीने कहता है ये दरबान, अभी सीख रहा हूँ आग़ाज़े महब्बत में ये आँखें ग़मज़े ये अदाएं
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
</poem>