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Kavita Kosh से
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,<br>
यों लगा जि़न्दगी ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।<br><br>
मौत की उमर् उमर क्या है? दो पल भी नहीं,<br>जि़न्दगी ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।<br><br>
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूंमरूँ,<br>लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूंडरूँ?<br><br>
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,<br>
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।<br><br>
मौत से बेखबर, जिन्दगी ज़िन्दगी का सफरसफ़र,<br>
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।<br><br>
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,<br>
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,<br>
न अपनों से बाकी है हैं कोई गिला।<br><br>
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,<br>
आज झकझोरता तेज़ तूफान है,<br>
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