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|रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’
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|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
दादो जी री दुनियां
चालती गेडियै पाण
बगती राणों-राण
पण
जित्ते हा दादो जी
बित्तै हो गेडियो।
उठतां-बैठतां
बगतां-ढबतां
उणां रै
साथै ई बगतो गेडियो
हाथां में
का पछै मांचै सा रै।
जापतो भी राखता
पूरो-पूरो
जतन करता
गेडियै रा
तेल चौपड़‘र राखता
टाबर रै गा‘ल राखता
उणरी मनगत
बगती गेडियै साथै
जे टाबर करतो
अणसुनी-अणकथी
नीं रैवंतो हाथै-बाथै
दिखावंता गेडियो
अर टाबर सरणै!
घर दर घर
गळी दर गळी
भंवता दादो जी
गेडियै चढ्या
करता गांवतरो
कोठै सूं बरसाळी
बरसाळी सूं कोटड़ी
गेडियै पाण
गेला पड़ता ओछा
डांगर ई जाणता
बां’रै गेडियै री
अणकथ भासा।
</poem>
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