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सौं कीं : दो / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

म्हारै कन्नै
सौं कीं
होंवता थकां
कीं नीं हो
ओ ई हौ
सौं कीं

</poem>
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