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|रचनाकार=गौरीशंकर
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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थूं बुहारी काढ़ती
दिखै
म्हूं आज कोसां-कोस
दूर बैठ्यो थकौ
थारी ओळ्यूं रै मिस
बाखळ मांय मंड्योड़ा मांडण देखूं।
म्हूं भळै
फेसबुक माथै सरच करूं
थारी ओळ्यूं रै मिस
बाखळ,
बुहारी,
मांडणा।

</poem>
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